मेहरौली में DDA ने जो मस्जिद गिराई, उसका एक सदी पुराना इतिहास ASI के रिकॉर्ड में दर्ज है!
दिल्ली के मेहरौली इलाके में अखूंदजी मस्जिद (delhi mehrauli mosque demolished) टूटने के बाद से विवाद जारी है. ये मस्जिद (akhoondji masjid) कब बनी, इस बारे में निश्चित तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता.
लेकिन ‘अखूंदजी की मस्जिद’ को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के एक अधिकारी ने साल 1922 के प्रकाशन में सूचीबद्ध किया था. इस रिकॉर्ड के मुताबिक, ‘मस्जिद कब बनी, इसकी तारीख का पता नहीं है लेकिन 1270 AH यानी साल 1853-54 में मस्जिद की मरम्मत की गई थी. और ये मस्जिद एक पुराने ईदगाह के पश्चिम में थी, जो साल 1398 में तैमूर के भारत पर हमले के वक़्त अस्तित्व में थी.’
मस्जिद कब टूटी?
30 जनवरी को, दिल्ली विकास प्राधिकरण (Delhi Development Authority) यानी DDA ने आरक्षित वन क्षेत्र- ‘संजय वन’ में अखूंदजी मस्जिद और एक मदरसे को ‘अवैध संरचना’ बताते हुए तोड़ दिया था. डीडीए का कहना था कि “धार्मिक प्रकृति की अवैध संरचनाओं को हटाने की मंजूरी धार्मिक समिति द्वारा दी गई थी, जिसकी जानकारी 27 जनवरी की मीटिंग में मिली थी.”
मस्जिद और मदरसे के गिरने के बाद, 31 जनवरी को, दिल्ली हाई कोर्ट ने DDA से जवाब मांगा कि उसने किस आधार पर मस्जिद तोड़ी. ये भी पूछा कि
“क्या मस्जिद तोड़ने की कार्रवाई की कोई पूर्व सूचना दी गई थी?”
हाई कोर्ट ने DDA से एक हफ्ते के अंदर जवाब देने को कहा है. अगली सुनवाई 12 फरवरी को होगी.
DDA का दस्तावेज क्या कहता है?
लेकिन कुछ इतिहासकारों और एक्टिविस्ट्स का कहना है कि ‘संजय वन’ को 1994 में आरक्षित वन क्षेत्र के बतौर अधिसूचित किया गया था, तो उससे पुरानी मस्जिद को अतिक्रमण कैसे कहा जा सकता है.’
इंडियन एक्सप्रेस की एक खबर के मुताबिक, ‘संजय वन’ को लेकर DDA का खुद के अपने ही एक दस्तावेज़ में कहा गया है,
“संजय वन, दिल्ली के मेहरौली साउथ सेंट्रल इलाके का एक हिस्सा है. ये साल 1927 के भारतीय वन अधिनियम (इंडियन फ़ॉरेस्ट एक्ट) की धारा 4 के तहत एक अधिसूचित रिजर्व्ड फ़ॉरेस्ट है. इस विरासत को ग्रीन बेल्ट के तौर संरक्षित और विकसित करने के लिए, 70 के दशक में DDA ने 784 एकड़ के इस इलाके को चिह्नित किया, जिसे अब संजय वन कहा जाता है. अरुणा आसफ रोड मार्ग से या कुतुब इंस्टिट्यूशनल एरिया से संजय वन पहुंचा जा सकता है.”
साल 1922 में ASI के असिस्टेंट सुपरिन्टेंडेंट रहे मौलवी जफर हसन की लिखी ‘मुस्लिम और हिंदू स्मारकों की लिस्ट’ (List of Muhammadan and Hindu Monuments, Volume III) प्रकाशित हुई थी. इसके मुताबिक,
“अखूंदजी मस्जिद ईदगाह के पश्चिम में लगभग 100 गज की दूरी पर थी. जबकि ईदगाह, तब अस्तित्व में थी जब साल 1398 में तैमूर ने भारत पर हमला किया था.”
इसमें मस्जिद के बारे में मौलवी जफर हसन ने ये भी रिकॉर्ड किया था-
“निर्माण की तारीख अज्ञात है, मरम्मत की तारीख 1270 AH (1853-4 ईसवी) है. मस्जिद के मेहराब के ऊपर लगे लाल बलुआ पत्थर के स्लैब पर निम्नलिखित शब्द उकेरे गए थे.”
क्या उकेरा गया?
जफर हसन के डॉक्यूमेंट के मुताबिक मेहराब पर लिखा था,
“वह ऊंचा और सबसे शक्तिशाली है. ए ज़फ़र, जब अखूंदजी ने इस पुरानी मस्जिद की मरम्मत की और इसे साफ किया. उनसे मरम्मत की तारीख के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने कहा, “अच्छे और दीन के व्यक्ति की तारीफ़ हो, साल 1270.”
जफर हसन मस्जिद की बनावट के बारे में भी कई जानकारियां लिखी थीं. जैसे,
“मस्जिद की छत धनुषाकार है. आंगन की माप 36 फीट 9 इंच गुणे 20 इंच फीट है. और उत्तर की तरफ के एक दरवाजे से इसके अंदर जाया जाता है.”
अख़बार के मुताबिक, लेखक सोहेल हाशमी कहते हैं,
“ये एक सक्रिय मस्जिद थी और साल 1994 में ‘संजय वन’ के अस्तित्व में आने से पहले ही इसका अस्तित्व था और इसीलिए ये इमारतें अतिक्रमण नहीं थीं.”
इतिहासकार राणा सफ़वी ने मेहरौली के इतिहास पर काफ़ी लिखा है. उन्होंने सोशल मीडिया साइट X पर एक पोस्ट में अखूंदजी मस्जिद के तोड़े जाने पर कहा है कि,
“हालांकि इमारत की तारीख अज्ञात है, लेकिन इसकी मरम्मत 1853-4 में की गई थी. ऐसा लगता है कि मरम्मत के लिए शिलालेख सम्राट शाह जफर ने लिखा था क्योंकि 1270 AH (1853-4 ईस्वी) में वह ज़फ़र के तखल्लुस (उपनाम) का इस्तेमाल करने वाले अकेले शख्स थे.”
फिलवक्त DDA की कार्रवाई को छह दिन हो गए हैं. मस्जिद गिरा दी गई है. इलाके में भारी बैरिकेडिंग नुमायां है. लेकिन इसके अस्तित्व और इसके जमींदोज़ किए जाने पर विवाद जारी है.