उत्तर भारत का प्राचीनतम राम मंदिर जिसे भूल गए रामभक्त भी

भगवान राम की जन्मस्थली अयोध्या में करोड़ों सनातन धर्मावम्बियों की आस्था का प्रतीक भव्यतम् मंदिर के रूप में आकार ले चुका है और अब दर्शनार्थ द्वार खुलने के लिए 22 जनवरी की प्रतीक्षा की जा रही है।

लेकिन करोड़ों धर्मावलम्बियों में से शायद कुछ ही को पता होगा कि अयोध्या के अलावा उत्तर भारत का पहला और प्राचीनतम राम मंदिर उत्तराखण्ड के टिहरी जिले के देवप्रयाग में है। भारत की सबसे पवित्र नदी गंगा के उद्गम पर बना यह रधुनाथ मंदिर जम्मू के डोगरा शासकों द्वारा निर्मित रघुनाथ मंदिर से भी कई सदियों पुराना है।

यह ऐसा मंदिर है जिसका उल्लेख न केवल पुराणों और चीनी यात्री ह्वेनसांग के यात्रा वृतांत में है बल्कि इसका प्रमाणिक इतिहास मंदिर परिसर के शिलालेखों और गढ़वाल राज्य के प्राचीन पंवार शासकों के कई सदियों पुराने ताम्र पत्रों में भी दर्ज है। ईटी एटकिंसन ने तो हिमालयन गजेटियर में अल्मोड़ा में भी रामचन्द्र मंदिर का उल्लेख किया है। लेकिन बिडम्बना यह कि पौराणिक काल के इन राम मंदिरों का नामलेवा भी देवप्रयाग वासियों के अलावा कोई नहीं मिलता है।

रघुनाथ मंदिर से ही निलती है पतित पावनी गंगा

मध्य हिमालय की कई पवित्र धाराओं से बनी अलकनन्दा एवं भागीरथी नदियों के संगम से भारत की सबसे पवित्र नदी गंगा का उद्भव होता है। इसी पवित्र स्थल पर एक छोटा सा ऐतिहासिक और पौराणिक नगर है जो कि अपने धार्मिक महत्व के कारण देवप्रयाग के नाम से जाना जाता है। गंगा के उद्गम और रघुनाथ मंदिर के कारण धार्मिक दृष्टि से यह प्रयाग (संगाम) अपने नाम के अनुकूल उत्तराखण्ड के पंच प्रयागों में सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है।

यह स्थान देश के चार सर्वोच्च धामों में से एक बदरीनाथ धाम और भारत तथा नेपाल में भगवान शिव के द्वादस ज्योतिर्लिंगों में से एक केदारनाथ धाम के यात्रा मार्ग पर ऋषिकेश से 73 किमी दूर और समुद्रपल से लगभग 830 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। फिर भी इस पवित्रतम रघुनाथ मंदिर को अपने स्वर्णिम अतीत के लिये राजनीतिक संरक्षण की जरूरत पड़ रही है।

 

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