लोकसभा से सस्पेंड हुए पहले सांसद की कहानी, जिनको इंदिरा गांधी भी काफिला रोक नमस्ते करती थीं

21 दिसंबर 2023… ये आज की तारीख है. इस दिन तक एक के बाद एक 143 सांसदों को संसद से सस्पेंड किया जा चुका है. 143 में 97 सांसद लोकसभा से हैं तो 46 राज्यसभा से. सस्पेंशन झेलने वाले सभी सांसद विपक्षी INDIA अलायंस के हैं. बसपा से निकाले गए सांसद दानिश अली, इसमें एकमात्र अपवाद हैं. इस तरह से संसद के अंदर कितने सांसद बचे तो INDIA अलायंस के 139 सांसदों में से लोकसभा के अंदर सिर्फ 43 बचे हैं. राज्यसभा में 96 सांसदों में से 50 सांसद बचे हैं. इन्हीं के सामने सरकार बिल ला रही है, बहस कर रही है.

ये तो हो गई आज की खबर. अब चलते हैं 61 साल पहले. तारीख 24 मई 1962. ये वो तारीख है जिस दिन संसद से पहली बार किसी सांसद को सस्पेंड किया गया था. क्या हुआ था उस दिन? कौन था वो सांसद? चलिए जानते हैं.

तारीख 24 मई 1962. पहली लोकसभा की शुरुआत हुए 10 साल से ज्यादा समय बीच चुका था. हरियाणा का एक लाल पहली बार संसद पहुंचा था. एक जमीनी सोशलिस्ट नेता जो राममनोहर लोहिया, जय प्रकाश नारायण जैसे सोशलिस्ट नेताओं का शागिर्द था. सोशलिस्ट पार्टी की टिकट पर हिसार लोकसभा से चुनकर लोकसभा पहुंचा तो विपक्ष की इतनी मुखर आवाज बना कि लोग उनको ‘डी फैक्टो लीडर ऑफ अपोजीशन’ बुलाने लगे. नाम था मनीराम बागड़ी. सरकार के खिलाफ इसी मुखरता ने उनके नाम एक तमगा चस्पा कर दिया. तमगा पहला सांसद होने का जिसे लोकसभा से सस्पेंड किया गया. तारीख हम पहले बता ही चुके हैं.

क्यों हुआ था संस्पेंशन?

दरअसल हुआ ये कि मनीराम एक ऐसे मुद्दे पर संसद के अंदर बोलने लगे जो उस दिन एजेंडे पर नहीं था. उनको तत्कालीन स्पीकर हुकम सिंह ने रोका मगर बागड़ी कहां सुनने वालों में से थे. नाराज स्पीकर ने उनको एक हफ्ते के लिए लोकसभा से सस्पेंड कर दिया. और तो और उनको मार्शलों ने उठाकर लोकसभा से बाहर किया गया. इस कदम के विरोध में तब बाराबंकी से सांसद राम सेवक यादव और दो अन्य लोग भी लोकसभा का बहिष्कार कर चले गए थे.

लगभग तीन महीने बाद यानी 31 अगस्त 1962 को एक और मजेदार मामला हुआ. वो ये कि इस दिन राम सेवक यादव को संसद से सस्पेंड कर दिया गया था. यानि बागड़ी के लिए संसद से बाहर जाने वाले रामसेवक ऐसे दूसरे सांसद बने जिन्हें लोकसभा से सस्पेंड किया गया और इस कदम के विरोध में इस बार मनीराम बागड़ी लोकसभा छोड़कर चले गए थे. रामसेवक यादव के सस्पेंशन के लिए बाकायदा मोशन लाया गया. तत्कालीन संसदीय कार्य मंत्री सत्य नारायण सिन्हा ये मोशन लेकर आए जिस पर वोटिंग हुई. और मोशन 29 वोटों के मुकाबले 235 वोटों के साथ पास हो गया और यादव सस्पेंड कर दिए गए.

फिर लोकसभा को मुगलिया कोर्ट कह दिया!

सबसे पहला सस्पेंशन झेलने वाले मनीराम बागड़ी इसके बाद भी मुखर बने रहे. इसी वजह से 25 दिसंबर 1964 को एक बार फिर वो सस्पेंड किए गए. हुआ ये था कि तत्कालीन गृह मंत्री गुलजारी लाल नंदा किसी विषय पर अपना पक्ष रख चुके थे. मनीराम बागड़ी को इस पर सवाल पूछने की अनुमति दी गई. बागड़ी ने बोलना शुरू किया तो वो अपनी बात लंबे भाषण के अंदाज में रखने लगे. स्पीकर ने उनको टोका कि सीधे सवाल पूछें. सीधे मुद्दे पर आएं मगर बागड़ी कहां मानने वाले थे. कांग्रेसी सांसदों के विरोध और स्पीकर के लगातार टोके जाने से खीझे बागड़ी ने फिर एक ऐसी टिप्पणी कर दी जिस पर बवाल मच गया. बागड़ी ने दरअसल लोकसभा की तुलना मुगलिया कोर्ट से कर दी थी. जिस पर उनसे स्पीकर ने अपने शब्द वापस लेने को कहा. मगर बागड़ी नहीं माने. बोले- मैंने यही तो कहा कि लोकसभा कोई मुगलिया कोर्ट नहीं है, इसमें क्या गलत है. जवाब में स्पीकर बोले- तो ये कोई मछली बाजार भी नहीं है और ना मैं इसे ऐसा बनने दूंगा. बागड़ी को अपने कहे पर खेद जताना होगा वरना वो एक्शन लेंगे.

मगर बागड़ी नहीं माने और अपनी बात पर अड़े रहे. एक बार फिर रामसेवक यादव, मधु लिमये जैसे नेता उनके समर्थन में आ गए. अंतत: फिर मोशन आया और 7 वोटों के मुकाबले 220 वोटों के साथ फैसला बागड़ी के विरोध में आया और बागड़ी को संसद से बाहर जाना पड़ा.

इंदिरा ने काफिला रोक नमस्ते किया!

खैर, बागड़ी ऐसे ही थे. अपने सिद्धांतों पर अटल और उसूलों पर राजनीति करने वाले. हरियाणा के लोग उनको इसीलिए शेरदिल आदमी कहते थे. सभी दलों के नेता, खासकर सरकार के नेता उनसे थोड़ा फासला ही बनाकर चलते थे. सम्मान तो करते ही थे. ऐसा ही एक किस्सा उनके बारे में सुनाया जाता है जब इंदिरा गांधी ने गाड़ी रोककर उनसे नमस्कार किया.
दरअसल, सांसद मनीराम बागड़ी बेटे सुभाष बागड़ी के साथ दिल्ली के अपने सरकारी आवास तीन मूर्ति लेन से पैदल ही दूध लेने जा रहे थे. तभी सामने से प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का काफिला आ रहा था. पी.एम. इंदिरा गांधी ने काफिले को रुकवाया और गाड़ी का शीशा नीचे किया. इंदिरा गांधी ने मुस्कुरा कर हाथ जोड़े और मनीराम बागड़ी को नमस्ते किया. उन्होंने भी इंदिरा जी का अभिवादन स्वीकार किया.

संसद में कांग्रेसी नेता को भेड़-बकरी कहा!

संसद के अंदर का भी एक दिलचस्प किस्सा है मनीराम बागड़ी से जुड़ा. बागड़ी संसद में अपनी पार्टी के संसदीय दल के नेता भी बने. इसी को लेकर कांग्रेस के सांसद सत्यनारायण सिन्हा ने मजाक में सोशलिस्ट पार्टी के नेताओं को कहा कि मनीराम जैसे अनपढ़ को संसदीय दल का नेता कैसे बना दिया.
बागड़ी को ये बात पता चली तो वे जवाब देने से वे भी नहीं चूके. अपने हरियाणवी लहजे में संसद के अंदर कहा –
‘जब सिन्हा कांग्रेस पार्टी के सांसदों के साथ कनॉट प्लेस से निकलेंगे तो लोग इसे भेड़ बकरियों का काफिला बताएंगे. लेकिन जब मैं अपनी सोशलिस्ट पार्टी के 7 सांसदों के साथ जाऊंगा तो लोग कहेंगे कि ये देखो, संसद के सात शेर जा रहे हैं.’

मनीराम बागड़ी के पॉलिटिकल करियर की बात करें तो वे तीन बार सांसद चुने गए और एक बार विधायक. सबसे पहले 1962 में हिसार से. फिर 1977 में जनता पार्टी के कैंडिडेट के तौर पर मथुरा से. और आखिर में 1980 में जनता दल(S)की टिकट पर हिसार से. इसके बाद भले वे सांसद ना बने हों, मगर उनका कद ऐसा था कि नेहरू से लेकर मनमोहन सिंह उनका सम्मान करते थे. 21 जनवरी 2012 को 92 की उम्र में उन्होंने अंतिम सांस ली.

राज्यसभा से पहला सस्पेंसन किसका?

लोकसभा के बाद राज्यसभा की बात करें तो वहां पहला सस्पेंशन हुआ था सोशलिस्ट नेता गोदे मुरहारी का. वो उत्तर प्रदेश से निर्दलीय राज्यसभा सांसद थे. मुरहारी को 3 सितंबर 1962 को उनके अमर्यादित व्यवहार के लिए बचे सत्र के लिए निलंबित किया गया था. स्पीकर के आदेश पर जब वे बाहर नहीं जा रहे थे तो उनको मार्शलों ने जबरदस्ती बाहर किया था. खैर यही मुरहारी 1972 से 1977 तक खुद राज्यसभा के उपसभापति रहे.

Similar Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *