लोहे के बने पुराने यमुना ब्रिज से जुड़े हैं ये पुराने रहस्य…! क्या आप जानते हैं इनको..
यमुना नदी भारत की उत्तर भारत में स्थित एक प्रमुख नदी है जो उत्तराखंड से होकर उत्तर प्रदेश के राज्यों में बहती है। यह नदी गंगा नदी के साथ-साथ देश की सबसे पवित्र नदियों में से एक मानी जाती है। लोग इसे जमुना नदी के नाम से भी जानते हैं। यमुना नदी दिल्ली, भारत की राजधानी में से ही बहती है और यह नदी दिल्ली के साथ-साथ पूरे देश के कई क्षेत्रों में बहती है।
जमुना नदी का उद्गम स्थल यमुनोत्री के पास हिमालय से है और इसके पानी ने पूर्वी और पश्चिमी नेहरू को यमुना की ओर आकर खींचा है। यमुना नदी को एक छोर से दूसरे छोर तक जाने के लिए लोग लोहे के पुल का उपयोग करते हैं। यह दिल्ली में स्थित सबसे पुराने पुलों में से एक है और इसे अंग्रेजों के शासनकाल में निर्मित किया गया था। यदि आप इस लोहे के पुल से जुड़े कुछ रोचक तथ्यों के बारे में नहीं जानते हैं, तो आज यहां आपको वे जानने को मिलेंगे।
यमुना ब्रिज का क्या है इतिहास
यमुना ब्रिज को दिल्ली से कोलकाता तक जोड़ने के लिए बनाया गया था। इसका निर्माण सन 1866 में ईस्ट इंडिया रेलवे द्वारा किया गया था और इसे बनाने की लागत 16,16,335 पाउंड थी। उस समय में एक पाउंड की कीमत 90.13 रुपये के बराबर होती थी।
अब आप इस हिसाब से समझ सकते हैं कि भारतीय मुद्रा में लगभग ₹140,000,000 की लागत से स्कूल का निर्माण हुआ था। इसके बाद, सन 1913 में दूसरी लाइन बनाई गई थी, जिसकी लंबाई 202 पॉइंट 5 फीट और अंतिम दोस्त 9:30 पर 5 फीट के 3 की थी। इनकी क्षमता बढ़ाने के लिए, 1933-34 में लगभग £23,31396 की लागत से स्कूल को स्टील गार्डन में बदल दिया गया। पूरा पुल का ढांचा ब्रिटेन से लाकर तैयार किया गया था।
क्या है ब्रिज की खासियत
इस ब्रिज की यह विशेषता रही है कि आने वाले समय में यमुना नदी में होने वाली बाढ़ को ध्यान में रखकर इसे तैयार किया गया है। उस समय में यमुना नदी का स्तर खतरे के निशान से लगभग 672 फीट ऊपर जाता था। इस ब्रिज में कुल 11 पिलर लगाए गए हैं और इन सभी पिलरों के फाउंडेशन का स्तर अलग-अलग रखा गया है। सबसे नीचे का पिलर 615 फीट की ऊंचाई पर बनाया गया है।
ट्रेन की रफ्तार कितनी होती है
इस ब्रिज से गुजरने वाली ट्रेनों की रफ्तार निम्न अनुसार होती है: मेल और एक्सप्रेस ट्रेन 15 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चलती हैं, मालगाड़ी ट्रेन 20 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से गुजरती है। दिल्ली के मंडल रेल प्रबंधक ने बताया है कि नये पुल का निर्माण होने के बाद यह पुल विरासत के रूप में सुरक्षित कर दिया जाएगा।
3500 टन का लग गया है लोहा
यहां एक और आपके लिए हैरान करने वाली बात है कि इस पुल में 3300 टन का लोहा लगाया गया है। जानकारी के अनुसार, 2011-12 में स्कूल की मरम्मत के दौरान 240 टन लोहा लगाया गया था जिसकी कीमत ₹110,000,000 रुपये थी। अब तक लगभग 900 टन के लोहे का उपयोग स्कूल के निर्माण में हो चुका है। यह काम पूरा होने के बाद ट्रेनों की रफ्तार पर कोई असर नहीं पड़ा।