आजादी के समय ये थे देश के सबसे बड़े उद्योगपति, रचाईं 6 शादियां, खाली जेब से खड़ा किया बड़ा साम्राज्य, फिर कैसे हुए बर्बाद

जिस समय देश आजाद हुआ, तब देश के शीर्ष उद्योगपति रामकृष्ण डालमिया थे. वह सेल्फ मेड शख्सियत थे. वह राजस्थान से करीब खाली जेब ही कोलकाता आए थे. फिर यहां छोटी-मोटी नौकरियां कीं. दलाली की. एक समय ऐसा भी आया कि लोगों ने उन पर भरोसा करना छोड़ दिया. पैसे उनके पास थे नहीं लेकिन उसके बाद उनकी किस्मत ऐसी बदली कि वह आगे बढ़ते चले गए. उन्होंने फिर देश का सबसे बड़ा औद्योगिक साम्राज्य खड़ा किया. फिर तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू से ऐसी ठनी कि ऐसे फंसते चले गए कि उनके हाथ से सबकुछ फिसल गया. लेकिन डालमिया का नाम आज भी देश में धनाढ्यता का प्रतीक जरूर है.

रामकृष्ण डालमिया 07 अप्रैल 1893 में राजस्थान के चिड़ावा कस्बे में पैदा हुए. उनके पिता भाग्य की तलाश में परिवार को कोलकाता ले गए. पिता का जीवन सादा था और संघर्षभरा. वो ताउम्र वहां बड़े सेठों के यहां मुनीम या अकाउंटेंट की नौकरी करते रहे. उनके बड़े बेटे रामकृष्ण अलग थे. बहुत तेज दिमाग और याददाश्त वाले. गणितीय क्षमता तो जबरदस्त थी. बचपन से ही उन्होंने छोटा-मोटा काम शुरू कर दिया था.रामकृष्ण डालमिया की बेटी नीलिमा डालमिया अधर की किताब “फादर डियरेस्ट-द लाइफ एंड टाइम्स ऑफ आरके डालमिया” में काफी कुछ विस्तार से लिखा है.

सट्टा बाजार की लत ने साख खत्म की

शुरुआती दौर में वो सट्टा बाजार में पैसा लगाते थे. इसमें उन्हें जहां बदनामी मिली. वहीं लोगों का भरोसा भी खोया. तब ये हालत हो गई कि कोई भी उनके साथ पैसों का लेन-देन पसंद नहीं करता था. लोगों ने उधार देना बंद कर दिया. एक बार उन्होंने पिता के वो 500 रुपए चुराए, जो उस फर्म के थे, जहां वो काम करते थे. हालांकि बाद में ये पैसा उन्होंने फर्म के मालिक को दोगुना लौटाया.

पंडित ने हाथ देखकर कहा-किस्मत बदलने वाली है

ऐसे समय में जब किस्मत उन्हें हर ओर से दगा दे चुकी थी. वो ज्यादातर कामों में नाकामी देख चुके थे. तमाम लोगों का हजारों रुपया कर्ज के तौर पर चढ़ा था. तब एक पंडित जी उनका हाथ देखकर कहा, “तुम अगले एक हफ्ते में अमीर हो जाओगे, तुम्हारे हाथों में 1.5 लाख रुपए होंगे.” ये हैरानी भरी बात थी. इस वो शख्स कैसे विश्वास कर सकता था, जिसकी जेब में तब 05 रुपए भी नहीं थे.

ऐसा हुआ. अचानक चांदी के दाम बढ़ने लगे. उन्होंने लंदन में चांदी की 04 फर्मों में जान-पहचान का फायदा उठाते हुए हजारों रुपए की चांदी बुक करानी शुरू की.हालांकि तब भी उनकी जेब में पैसे नहीं थे. लेकिन इसे ही किस्मत कहते हैं.

चांदी के बढ़े दामों ने वारा न्यारा कर दिया

तब चांदी के दाम चढ़े ही नहीं बल्कि बेतहाशा चढ़े. देखते ही देखते वाकई एक हफ्ते में उन्होंने डेढ़ लाख रुपए कमाया. इतना ज्यादा धन हाथ में आया तो सबका उधार खत्म किया. अब भी उनके पास काफी रुपए थे. जिस तरह उन्होंने सबसे पैसे वापस किए, उससे कोलकाता के व्यापार जगत में ऐसे शख्स बनकर उभरे, जो अब ना केवल विश्वसनीय बन चुका था बल्कि उसकी चतुराई और व्यापारिक बुद्धि की भी धाक जम चुकी थी.

Similar Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *