भारत-पाकिस्तान के दो प्रधानमंत्री जो एक ही दिन पैदा हुए, शांति के लिए बार-बार साथ आए

भारत और पाकिस्तान की राजनीति में दो प्रमुख शख्सियतों अटल बिहारी वाजपेयी और नवाज शरीफ का एक ही दिन जन्मदिन होना एक संयोग हो सकता है, लेकिन दोनों नेताओं ने शांति के खूब प्रयोग किए. आज दोनों नेताओं का जन्मदिन है. नवाज शरीफ इन दिनों भारत के प्रति काफी नरम रुख अपनाए हुए हैं. वह भारत के साथ फिर से दोस्ती कायम करना चाहते हैं. आइए आज दोनों नेताओं के खास दिन पर उनकी खास मुलाकात को याद करते हैं.

अटल बिहारी वाजपेयी और नवाज के बीच अच्छे संबंध दोनों देशों की शांति बहाली की कोशिश में एक संजीवनी बूटी साबित होती है, लेकिन उनके राजनीतिक मतभेद और भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव इस कहानी पर हावी रही है. अटल और नवाज की दोस्ती 1999 में उभरकर सामने आई, जब वाजपेयी बस में सवार होकर अचानक पाकिस्तान पहुंच गए. इस घटना की शुरुआत भी काफी दिलचस्प है.

जब भारत ने पोखरण में दोहराया न्यूक्लियर टेस्ट

साल 1998 में वाजपेयी ने अपने प्रधानमंत्री कार्यकाल के दौरान एक बड़ा फैसला किया. उन्होंने पूरी दुनिया और खासकर पाकिस्तान को हिलाकर रख दिया, जब उनके नेतृत्व में भारत ने दूसरी बार न्यूक्लियर टेस्ट यानी सफल परमाणु परीक्षण किए. इसे पोखरण-II कहा जाता है, जिसकी वजह से पड़ोसी मुल्क तनाव में आ गया था. परमाणु युद्ध की आशंका पैदा हो गई. इस घटना के महीनों बाद वाजपेयी ने अपनी तरफ से पाकिस्तान के साथ शांति की पहल शुरू की.

वाजपेयी ने पाकिस्तान को यह यकीन दिलाई कि वह असल में कोई युद्ध नहीं चाहते थे, बल्कि इसका मकसद भारत को परमाणु के मोर्चे पर एक ताकतवर देश के रूप में दुनिया में पेश करना था. वाजपेयी की यात्रा से पाकिस्तान भी तमाम दुश्मनी भुलाकर मंत्रमुग्ध हो उठा. फरवरी 1999 में, उन्होंने दिल्ली और लाहौर के बीच बस सेवा शुरू की, और 19 फरवरी को इसके उद्घाटन पर बस में सवार होकर पाकिस्तान पहुंच गए.

वाजपेयी तो पाकिस्तान में भी जीत सकते हैं चुनाव!

भारत के पूर्व पीएम की अचानक यात्रा को पाकिस्तानी आज भी याद करते हैं, जहां उन्होंने अपनी इंसानियत और कविता से सभी का दिल जीत लिया था. नवाज शरीफ ने यहां तक कहा था कि अब तो वाजपेयी जी पाकिस्तान में चुनाव भी जीत सकते हैं. उनके साथ बस में पत्रकार कुलदीप नैयर, नृत्यांगना मल्लिका साराभाई और देव आनंद और जावेद अख्तर जैसी फिल्मी हस्तियां समेत 22 नामचीन हस्तियां भी सवार थी.

अटल बिहारी वाजपेयी जितने अच्छे इंसान थे, जितने अच्छे प्रधानमंत्री थे उतने ही अच्छे कवि भी थे. उन्होंने भरी महफिल में ‘अब जंग ना होने देंगे’ कविता भी सुनाई. उन्होंने अकबर और शाहजहां की दिलचस्प कहानियां भी सुनाईं, जिसपर महफिल में खूब तालियां बजीं. इसी पर नवाज शरीफ बोले उठे, वाजपेयी साहब अब तो पाकिस्तान में भी चुनाव जीत सकते हैं.”

भारतीय पूर्व पीएम वाजपेयी की पाकिस्तान यात्रा 21 फरवरी के समाप्त हुई और अपनी यात्रा के दौरान नवाज शरीफ के साथ उन्होंने एक द्विपक्षीय समझौते और शासन संधि और लाहौर घोषणा या लाहौर डिक्लेरेशन पर हस्ताक्षर किए. इससे यह सहमति बनी कि दोनों देश एक-दूसरे के प्रति परमाणु हथियार का इस्तेमाल नहीं करेंगे. इन संधियों को बाद में दोनों देशों की संसद से भी पारित कराया गया.

युद्ध के विरोध में थे नवाज, गंवानी पड़ी थी सत्ता

लाहौर डिक्लेरेशन भारत और पाकिस्तान के बीच नए संबंध कायम करने में एक बड़ी सफलता थी, हालांकि मई 1999 के कारगिल युद्ध ने सभी कोशिशों पर पानी फेर दिया. हालांकि, अभी भी सब कुछ खत्म नहीं हुआ था. 2004 में, इस्लामाबाद में आयोजित सार्क शिखर सम्मेलन के लिए वाजपेयी फिर से पाकिस्तान गए और इस दौरान शांति स्थापित करने की दोबारा कोशिश की गई. हालांकि, इसका कुछ खास असर नहीं हुआ. कहा जाता है कि नवाज शरीफ को युद्ध का विरोध करने पर सेना प्रमुख परवेज मुशर्रफ ने सत्ता से बेदखल कर दिया.

“खेल भी जीतिए, दिल भी जीतिए”

साल 2004 वही साल था जब भारतीय क्रिकेट टीम ने पाकिस्तान का ऐतिहासिक दौरा किया था, जहां उन्होंने 3 मैचों की टेस्ट सीरीज और पांच मैचों की वनडे सीरीज खेली थी. तब 19 साल बाद कोई भारतीय क्रिकेट टीम पाकिस्तान के दौरे पर थी. कथित तौर पर भारतीय फैंस को 20,000 वीजा जारी किए गए थे. टीम के पाकिस्तान रवाना होने से पहले वाजपेयी ने एक और मशहूर बयान दिया. उन्होंने भारतीय टीम से कहा था: “खेल भी जीतिए, दिल भी जीतिए.” भारतीय टीम ने जीत हासिल की और उनकी पाकिस्तान यात्रा मानवीय आधार पर भी काफी सफल रही.

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