ईरान और इसराइल के मिसाइल हमलों के बाद मध्य पूर्व में क्या कुछ बदला?

ध्य पूर्व में ख़बरें तेज़ी से बदलती हैं. एक दिन अगर ईरान और इसराइल के बीच अभूतपूर्व मिसाइल और ड्रोन हमले की ख़बरें मीडिया में छाई रहती हैं, तो अगले दिन ग़ज़ा में चल रही जंग और वहां रहने वालों की मुश्किलें मीडिया में सुर्खियां बन जाती हैं.

 

लेकिन नीति निर्धारक, विश्लेषक और सैन्य नेता अब भी इस अभूतपूर्व स्थिति को समझने की कोशिश कर रहे हैं.

बीते दिनों मध्य पूर्व के दो पुराने दुश्मन ईरान ने इसराइल पर मिसाइलों और ड्रोन से हमला किया और वहीं इसराइल ने प्रतिक्रिया में उस पर मिसाइलें दाग़ीं

लेकिन ये पूरा मामला एक व्यापक अंतरराष्ट्रीय संघर्ष बनने से बस कदम भर की दूरी पर रुक गया.

ग़ौर करने वाली बात ये है कि ये दोनों मुल्क एक व्यापक लड़ाई शुरू होने के कितने क़रीब पहुंच गए थे और उनके सामने संघर्ष की कितनी बड़ी खाई फैली हुई थी.

ये पहली बार है जब ईरान और इसराइल ने सीधे तौर पर एक दूसरे पर हमला किया है.

कुछ विश्लेषक मानते हैं कि मिसाइलों और सैंकड़ों ड्रोन से किए गए ईरान के हमले का पैमाना काफी बड़ा था. ये यूक्रेन पर किए गए रूस के हमले से भी कहीं अधिक बड़ा था.

इराक़ के शासक सद्दाम हुसैन के 1991 में इसराइल पर स्कड मिसाइल दाग़ने के बाद ये पहली बार था जब इसराइल पर किसी बाहरी ताकत ने बमबारी की थी.

हालांकि ईरान ने जो 300 से अधिक ड्रोन और मिसाइलें इसराइल की तरफ छोड़ी थीं, उनमें से अधिकांश को या तो गिरा दिया गया या फिर वो रास्ते में नाकाम हो गईं.

लेकिन यरुशलम में मौजूद अपने दफ्तर से मैंने देखा कि इसराइली एयर डिफेंस सिस्टम की प्रतिक्रियात्मक कार्रवाई के कारण आसमान रात को जगमगाने लगा था.

इसराइली मिसाइलें, ईरान की बैलिस्टिक मिसाइलों को बीच आसमान में नष्ट करने की कोशिश कर रही थीं.

 युद्ध मध्य पूर्व तक पहुंचते-पहुंचते कैसे रुका?

उस दिन अगर एक जीपीएस गाइडेंस सिस्टम नाकाम हो जाता तो कोई मिसाइल शहरी आबादी वाले इलाक़े में गिर सकती थी, जिससे जानमाल का नुक़सान हो सकता था.

एक वरिष्ठ पश्चिमी सुरक्षा अधिकारी ने मुझसे कहा, “मुझे नहीं लगता कि लोगों को इस बात का अहसास है कि उस दिन हम तबाही के कितना नज़दीक थे. उस दिन ये कहानी पूरी तरह पलट गई होती.”

हालांकि इसके बावजूद पश्चिम के कई लोग 13 अप्रैल को ईरान के इसराइल पर हमले और इसके बाद इसराइल की सीमित प्रतिक्रिया को सकारात्मक नज़रिए से देखते हैं.

वो मानते हैं कि ईरानी हमलों का सटीक अनुमान लगाकर उसे रोक पाना ख़ुफ़िया स्तर पर इसराइल के लिए बड़ी कामयाबी है.

वो मानते हैं कि इसराइल की सुरक्षा, इसराइल के सहयोगी देशों के सैन्य कोऑपरेशन का उदाहरण है.

वो कहते हैं कि इस मामले के बाद ईरान और इसराइल दोनों ने ये सीखा है कि तनाव बिना बढ़ाए कैसे काम करें.

 क्या ईरान हमले की खबर पहले ही मिल गई थी?

पहले ख़ुफ़िया ऑपरेशन की बात करते हैं. मुझे बताया गया है कि शनिवार को ईरान के हमले से पहले बुधवार को उसकी योजना के बारे में जानकारी मिली.

सबसे अहम ये कि उन्हें इस हमले के पैमाने के बारे में जानकारी हाथ लगी.

पश्चिमी मुल्क के एक उच्चस्तरीय स्रोत ने बताया, “हमें इसकी उड़ती ख़बर मिली कि ईरान की प्रतिक्रिया उम्मीद से कहीं आगे होगी. ये जानकारी एक झटके की तरह थी, लेकिन इससे हमें इसके लिए अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया तैयार करने में मदद मिलती है.”

महत्वपूर्ण बात ये है कि इसकी मदद से अमेरिका खाड़ी के कुछ देशों को इसराइल की सुरक्षा के पक्ष में रहने के लिए मना सका, इनमें सऊदी अरब और जॉर्डन शामिल थे.

ईरान के हमले के बारे में पहले से ख़ुफ़िया जानकारी मिलने के बाद उन्हें ये डर था कि अगर इजराइल के पास कड़ाई से जवाब देने के सिवा कोई और रास्ता नहीं रह गया तो, ईरान का हमला इस प्रांत में एक बड़े युद्ध की शुरुआत कर सकता है.

मतलब ये कि सही ख़ुफ़िया जानकारी और ईरान की तरफ से निजी स्तर पर इशारा (जिससे अमेरिका इनकार करता रहा है) ने इसराइल और उसके सहयोगियों को उसके हमलों से निपटने की तैयारी के लिए वक्त दे दिया.

इस पूरे मामले में जॉर्डन और सऊदी अरब ने क्या भूमिका निभाई? अब तक ये पूरी तरह स्पष्ट नहीं है.

जॉर्डन ने कहा है कि उसने अपनी संप्रभुता की और सरहदों की सुरक्षा को देखते हुए ईरानी ड्रोन्स को गिराया.

ये भी समझा जा सकता है कि जॉर्डन ने कुछ इसराइली लड़ाकू विमानों को अपने हवाई क्षेत्र का इस्तेमाल करने दिया.

माना जा रहा है कि अमेरिका को जानकारी सऊदी अरब ने दी और इस दौरान उसने यमन से ईरान समर्थित सशस्त्र गुटों से ख़तरे पर नज़र बनाए रखी.

 क्या सफल हुई रणनीति?

मुख्य मुद्दा ये है कि ये रणनीति काम कर गई. अमेरिकी, ब्रितानी, फ्रांसीसी, जॉर्डन और सऊदी अरब की सेनाओं ने ये साबित कर दिया कि हवाई सुरक्षा के मामले में ये सेनाएं साथ मिलकर काम कर सकती हैं.

एक सुरक्षा सूत्र ने बताया, “यह एक सामरिक ऑपरेशन था जो असाधारण रूप से सफल था. पहले से मिली ख़ुफ़िया जानकारी ने काफी मदद की, हमारी नज़र पूरे इलाक़े पर रही और हमने साथ मिलकर काम किया. दुनिया में कोई और देशों का समूह ये काम नहीं कर सकता था.”

हालांकि कुछ लोगों का ये भी कहना है कि यह ईरान के ख़िलाफ़ मध्य पूर्व में एक नए सहयोगी गुट के अस्तित्व में आने की शुरुआत भी हो सकती है.

लेकिन औरों का कहना है कि इसे एक ख़ास सुरक्षा और सैन्य नज़रिए से भी देखा जा सकता है.

इस घटना को एक तकनीकी सफलता के रूप में तो देखा जा सकता है, लेकिन इससे जुड़ी बड़ी राजनीतिक तस्वीर को देखने से इनकार किया जा सकता है.

कुछ और विश्लेषक जो उदासीन रवैया अपनाते हैं, वे कहते हैं कि अगर ईरान वाकई में इसराइल को बड़ा नुक़सान पहुंचाना चाहता था तो उसे पहले से चेतावनी नहीं देनी चाहिए थी, उसे अपने निशाने बढ़ाने चाहिए थे और एक हमला ख़त्म होने के बाद दूसरे हमले भी करने चाहिए थे. वो लेबनान की तरफ से हिज़्बुल्लाह को कह सकता था कि वो इसराइल पर बड़ा हमला करे.

थिंकटैंक, इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फ़ॉर स्ट्रैटजिक स्टडीज़ में रीजनल सिक्योरिटी मामलों के निदेशक एमिली होकायेम कहते हैं कि इस अभियान ने ये बात दुनिया के सामने खोलकर रख दी है कि इसराइल अपनी सुरक्षा के लिए किस हद तक अपने सहयोगियों पर निर्भर करता है.

वो कहते हैं कि अगर संघर्ष का दायरा बढ़ जाता तो इसराइल के पास ज़रूरी एयर डिफेन्स मिसाइलें होती भी या नहीं इस बात पर उन्हें शक़ है.

होकायेम कहते हैं, “हमने रूस और यूक्रेन के बीच हुए युद्ध के मामले में देखा है कि आपके पास हथियारों के ज़खीरे में पर्याप्त साजो सामान होना कितना ज़रूरी है.”

वे इस बात से इनकार करते हैं कि ये घटना मध्य पूर्व में एक नए सैन्य सहयोगी गुट की शुरुआत हो सकती है.

उन्होंने कहा, “हम एक नए युग की शुरुआत पर नहीं खड़े हैं. अरब देशों ने इसमें सहयोग किया, क्योंकि प्राथमिक तौर पर वो इस इलाक़े में किसी तरह का संघर्ष नहीं चाहते थे.”

“वो ये भी दिखाना चाहते थे कि वो अपने पश्चिमी सहयोगियों के अच्छे पार्टनर हैं. सीधी-सीधी बात है, ये उनके लिए राष्ट्रीय संप्रभुता की रक्षा का मामला है. वो नहीं चाहते कि उनके हवाई क्षेत्र में चीज़ें उड़ती हुई दिखें या फिर धमाके होते दिखें.”

 खेल के नियम अब बदल गए हैं

कुछ आशावादी विश्लेषक कहते हैं कि इस घटना से ईरान और इसराइल दोनों ने ही कुछ न कुछ सीखा है.

उनका कहना है कि यह पहली बार है जब दोनों देशों ने अपने इरादे साफ़-साफ़ बताए.

उन्हें इसका अहसास हुआ कि बिना किसी अपमान के वो तनाव आगे बढ़ाने की बजाय पीछे हट सकते हैं और दोनों को डर था कि दोनों अपनी-अपनी सुरक्षा बढ़ाने के लिए काम करेंगे.

ईरान ने अपने सहयोगियों को ये बता दिया कि वह इसराइल पर हमला कर सकता है. वहीं इसराइल ने मध्य ईरान में एयर डिफेंस पर एक छोटा हमला कर ये दिखा दिया वह कितना ताकतवर है और इस बात के संकेत दे दिए कि वह जब और जहां चाहे, हमला कर सकता है.

मुझे बताया गया कि ईरान को इसराइल की जवाबी कार्रवाई के बारे में बताया गया होगा.

निश्चित तौर पर ईरान ने शुरू से ही संकेत दे दिए थे कि इसराइल के जवाबी हमले के बाद वह फिर से हमला नहीं करेगा.

दोनों देशों ने निश्चित रूप से सैन्य सबक सीख लिया होगा. इंस्टीट्यूट फॉर द स्टडी ऑफ वॉर ने कहा, “इस हमले से ईरान को इसराइली एयर डिफेंस की कमजोरियों और शक्तियों को पहचानने में मदद मिली होगी.”

इसके अलावा इसराइल और अमेरिका की भी ईरान की सामरिक रणनीतियों को लेकर समझ बेहतर हुई होगी.

इसके अलावा अब तक ईरान और इसराइल एक दूसरे के खिलाफ सालों से छद्म युद्ध लड़ रहे थे लेकिन अब दोनों देश आसानी से एक दूसरे पर सीधा हमला कर सकते हैं.

फॉरेन पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट के अफशोन ओस्तोवर ने फॉरेन अफेयर्स के लिए लिखे एक आर्टिकल में कहा कि ईरान ने जिस पैमाने पर इसराइल पर हमला किया, उससे पता चलता है कि अब वह संयम की नीति के साथ चलने को तैयार नहीं है.

वे लिखते हैं कि इस बात में दम नहीं है कि ईरान ने जानबूझकर इसराइल पर कमजोर हमला किया है.

ओस्तोवर कहते हैं कि ईरान को उम्मीद थी कि इस हमले से इसराइल को एक बड़ा झटका लगेगा.

होकोयम उस बात से इत्तेफाक नहीं रखते कि ईरान और इसराइल ने एक दूसरे को समझना सीखा है.

वे कहते हैं कि दमिश्क में ईरान के वाणिज्य दूतावास पर हुए हमले का परिणाम क्या होगा, इसे समझने में इसराइल विफल रहा है.

वे कहते हैं, “ये दोनों देश एक-दूसरे से बात नहीं करते हैं. इसके बजाय वे केवल सैन्य तरीकों और तीसरे पक्ष के जरिए एक दूसरे को संकेत देते हैं. ये चीजें बहुत तेजी से खराब हो सकती हैं. दूसरे पक्ष के इरादों को गलत तरीके से पढ़ना और जोखिम उठाने का दम रखना दोनों पक्षों के बीच एक विशेषता की तरह है.”

इसराइली अखबार हारेत्ज़ के लिए रक्षा विश्लेषक अमोस हरेल ने लिखा कि दोनों देशों ने एक सीमित नुकसान के साथ खेल के पिछले नियमों को बदल दिया है.

वे कहते हैं कि इस संकट में मुख्य सबक जो लोगों ने सीखा, वह यह कि यह क्षेत्र युद्ध के कितने करीब आ गया था.

एक पश्चिमी राजनयिक ने मुझसे कहा, “यह बहुत बड़ी राहत है. यह बहुत अलग दिशा में जा सकता था.”

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