जब बाबरी का विवादित ढांचा गिर रहा था, तब क्या वाकई में PM नरसिम्हा राव पूजा कर रहे थे?

6 दिसंबर 1992. बाबरी विवादित ढांचा कारसेवकों के गुस्से का शिकार हुआ. ढहा दिया गया. तत्कालीन पीएम नरसिम्हा राव पर कई आरोप लगे कि उन्होंने तुरंत कल्याण सिंह सरकार को बर्खास्त क्यों नहीं किया? उनका कहना था कि उत्तर प्रदेश के तत्कालीन राज्यपाल की ओर से भेजी गोपनीय रिपोर्ट को पढ़ने के बाद उनके सामने विकल्प नहीं थे. सिवाए इसके कि वे संघीय ढांचे की मर्यादाओं के अनुसार राज्य सरकार के भरोसे और वायदे पर विश्वास रखते.

पर क्या नरसिम्हा राव इतने ही लाचार थे, जितना वो खुद को बताते थे? ऐसे कई और भी सवाल हैं जो उठते हैं कि जब 6 दिसंबर को 12 बजे तक पुलिस और सुरक्षाबलों का इकबाल खत्म हो गया था. तो नरसिम्हा राव को कल्याण सिंह सरकार तुरंत बर्खास्त करने में क्या दिक्कत थी. वो सरकार की बर्खास्तगी के लिए 9 घंटे तक ढांचा गिरने का इंतजार क्यों करते रहे? ऐसे कई सवालों के जवाब मिलते हैं अयोध्या आंदोलन से जुड़ी खास किताब में, जिसका नाम है ‘युद्ध में अयोध्या’. किताब के लेखक हैं टीवी9 नेटवर्क के न्यूज डायरेक्टर हेमंत शर्मा.

अयोध्या आंदोलन से जुड़ी इस किताब में यह आकलन किया गया है कि नरसिम्हा राव भी कार्रवाई के बाद रक्तपात की जिम्मेदारी लेने से बच रहे थे. आसान भाषा में कहें तो वे अपनी प्राथमिक जिम्मेदारी लेने से बच रहे थे.

‘BJP से लड़ लें, राम से कैसे लड़ें’

एक और सवाल खूब उठता है कि 6 दिसंबर को पीएम नरसिम्हा राव की मनोस्थिति आखिर क्या थी, वो क्या कर रहे थे? अब इसकी बात कर लेते हैं. इसका ब्योरा एक और किताब ‘व्हील्स बिहाइंड द वेल’ में मिलता है. इसे लिखा है पीवीआरके प्रसाद ने जो नरसिम्हा राव के अतिरिक्त सचिव और उनके सर्वाधिक भरोसेमंद अधिकारी हुआ करते थे. प्रसाद वही अधिकारी थे जिनका इस्तेमाल नरसिम्हा राव ने संत समाज में तोड़फोड़ करने के लिए किया था.

प्रसाद अपनी किताब में लिखते हैं, “विवादित ढांचा जब गिर रहा था तो नरसिम्हा राव बेचैनी में अपने कमरे में टहलकर खुद से जोर-जोर से बातें कर रहे थे. वे आक्रोश में थे. वे कह रहे थे, हम भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) से लड़ सकते हैं लेकिन हम भगवान राम से कैसे लड़ेंगे? बीजेपी का बर्ताव ऐसा है जैसे भगवान राम पर सिर्फ उन्हीं का अधिकार है. जब हम कहते हैं कि कांग्रेस एक धर्मनिरपेक्ष पार्टी है तो इसका मतलब ये कतई नहीं है कि हम नास्तिक हैं. भगवान राम हमारे लिए भी भगवान हैं. हम भी उनकी पूजा वैसे ही करते हैं, जैसे वे करते हैं. अयोध्या में राम मंदिर बनाने के बहाने वे कब तक लोगों की आंखों में धूल झोंकते रहेंगे.”

‘क्या मुझे राजनीति नहीं आती’

पत्रकार कुलदीप नय्यर ने तो अपनी आत्मकथा ‘बियॉन्ड द लाइंस में’ और विस्फोटक दावा किया था. लिखा था, “मुझे जानकारी है कि राव की बाबरी मस्जिद विध्वंस में भूमिका थी. जब कारसेवक मस्जिद को गिरा रहे थे, तब वो अपने निवास पर पूजा में बैठे हुए थे. वो वहां से तभी उठे जब मस्जिद का आखिरी पत्थर हटा दिया गया.” हालांकि क्या कुलदीप नय्यर वहां स्वयं मौजूद थे? इस पर वे कहते हैं कि उनको ये जानकारी समाजवादी नेता मधु लिमए ने दी थी जिनको ये बात प्रधानमंत्री कार्यालय में उनके एक ‘सोर्स’ ने भी बताई थी. उन्होंने इस सोर्स का नाम नहीं बताया.

नरसिम्हा राव पर बहुचर्चित किताब ‘हाफ लायन’ लिखने वाले विनय सीतापति भी इस मामले में नरसिम्हा राव को क्लीनचिट देते हैं. ढांचा गिराए जाने के बाद तीन बड़े पत्रकार निखिल चक्रवर्ती, प्रभाष जोशी और आरके मिश्र भी नरसिम्हा राव से मिलने गए. सभी जानना चाहते थे कि 6 दिसंबर को नरसिम्हा राव ने ऐसा क्यों होने दिया. इसे क्यों नहीं रोका. तो नरसिम्हा राव का जवाब था, “क्या आप लोग ऐसा समझते हैं कि मुझे राजनीति नहीं आती? मैंने जो कुछ किया सोच समझकर किया. मुझे बीजेपी की मंदिर राजनीति को खत्म करना था. वह मैंने कर दिया.”

Similar Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *