जिसने चुराया था ताजमहल और लाल किला.., उसका घर देख हो जाएंगे हैरान, पड़ोसी ने खोले इस चोर के कई राज

नटवरलाल को पूरे भारत में सभी लोग जानते हैं, जो बिहार के सबसे बड़े ठग हुए. मिथलेश कुमार श्रीवास्तव उर्फ नटवरलाल बिहार के सीवान के रुइया बंगरा गांव से हैं. आज आपको नटवरलाल के घर की कुछ दुर्लभ तस्वीर दिखाएंगे कि आखिरकार जिसने ताज महल को तीन बार, लाल किला को दो बार और राष्ट्रपति भवन को एक बार बेचा था, वो किस घर में रहता था. नटवरलाल को कोर्ट ने 120 साल की सजा भी सुनाई थी, लेकिन वे जेल से भाग निकले थे.

यह मिथलेश कुमार श्रीवास्तव उर्फ नटवरलाल का पैतृक घर है. यहां आज के वक्त में केवल पेड़ ही बचे हैं. इस मकान के नामों निशान तक नहीं है. जिस पेड़ को आप देख रहे हैं, इसी के खंडहर जमीन पर एक मकान था, जो आज खत्म हो चुका है. स्थानीय लोग अतिक्रमण कर यहां रह रहे हैं. यहां सिर्फ इनकी जमीन ही बची हुई है. आज इनके परिवार का कोई भी सदस्य नहीं है. नटवरलाल की एक बेटी थी, उसका भी पता नहीं है.

नटवरलाल सीवान के रुइया बंगरा गांव के रहने वाले थे. ये दो भाई थे, जिनमें एक भाई का नाम गंगा लाल श्रीवास्तव था. गंगा लाल की एक बेटी अभी भी जीवित है, जो गोपालगंज जिले के एक सरकारी स्कूल में शिक्षिका है. वही नटवरलाल की भी एक बेटी मीरा थी. हालांकि वो आज जीवित है या नहीं, इसके बारे में कोई नही जानता. स्थानीय लोगो का मानना है कि मीरा भी मर चुकी है. अगर वो जीवित रहती, तो जरूर अपने गांव लौटती.

नटवरलाल के पड़ोसी विनोद श्रीवास्तव बताते हैं कि नटवरलाल ने अपने जीवन काल में जो कुछ भी किया, वो अपने देश-समाज, गरीब और जरूरतमंदों के लिए किया. उन्होंने अपने स्वार्थ के लिए किसी भी प्रकार का कार्य नहीं किया. वे चोरी नहीं करते थे, बल्कि उनमें यह काबिलियत थी कि वह किसी के सिग्नेचर का हूबहू नकल कर लेते थे. उनके रहते गांव में कोई भूखा नहीं सोया. यही वजह है कि स्थानीय लोग उन्हें मसीहा कहते हैं.

कहने को तो उनके ठगी के किस्से विदेशों तक में मशहूर हैं, लेकिन इन किस्सों की शुरुआत नटवरलाल के पड़ोस से ही हुई. एक बार नटवरलाल को उनके पड़ोसी ने बैंक ड्राफ्ट जमा करने के लिए भेजा. वहां जाकर नटवरलाल ने पड़ोसी के हस्ताक्षर को हूबहू कॉपी कर दिया. इसके बाद उसने कई दिनों तक अपने पड़ोसी के सिग्नेचर को कॉपी कर उनके खाते से पैसे निकाले. जब पड़ोसी को इस बात की भनक लगी, तब तक नटवरलाल अकाउंट से 1000 रुपए निकाल चुके थे. इसके बाद से ही उन्होंने फर्जी नकल कर ठगी की शुरुआत कर दी.

नटवरलाल जिस परिवार से ताल्लुक रखते थे, वह परिवार काफी शिक्षित था. नटवरलाल खुद कोलकाता से वकालत की पढ़ाई कर चुके थे. वहीं उनके पड़ोसी मुरली लाल प्रसाद ने नटवरलाल के घर के पास ही 1980 में आईटीआई की शुरुआत की, ताकि गांव के बच्चे पढ़-लिख कर शिक्षित हो सके. हालांकि मैनेजर की वजह से वह भी बंद हो गया. आज यह भवन खण्डहर में तब्दील हो चुका है. नटवरलाल भले ही ठगी करते थे, लेकिन उनके रिश्तेदार शिक्षा व संस्कार की अलख जगाते थे.

Similar Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *