मांझी कैबिनेट में स्वीकार, NCP को इनकार… क्या अजित पवार पर नहीं रही बीजेपी की निर्भरता?

नरेंद्र मोदी ने लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ले ली है. एनसीपी को छोड़कर एनडीए के सभी घटक दलों को मोदी सरकार 3.O में जगह मिली है. एक सीट जीतने वाले जीतनराम मांझी ने मोदी मंत्रिमंडल में कैबिनेट मंत्री के तौर पर शपथ ली है. अजित पवार गुट की एनसीपी कोटे से प्रफुल्ल पटेल और सुनील तटकरे मंत्री पद के रेस में थे, लेकिन कैबिनेट पद नहीं मिलने से एनसीपी केंद्रीय मंत्रीमंडल में शामिल नहीं हुई. बीजेपी ने एनसीपी को स्वतंत्र प्रभार (राज्यमंत्री) पद देने का ऑफर किया था, जिस पर अजित पवार राजी नहीं हुए हैं. मोदी सरकार 3.0 मंत्रिमंडल में एनसीपी शामिल नहीं हुई, जिसके चलते सवाल ये उठ रहा है कि अजित पवार पर बीजेपी की निर्भरता नहीं रह गई है?
अजित पवार की एनसीपी एनडीए गठबंधन का हिस्सा है. महाराष्ट्र में बीजेपी के साथ मिलकर अजित पवार की पार्टी एनसीपी चुनाव लड़ी थी. एनसीपी एक लोकसभा सीट ही जीत सके हैं. सुनील तटकरे एनसीपी से सांसद बने हैं और प्रफुल्ल पटेल राज्यसभा सांसद है.
बीजेपी ने एनसीपी ने मोदी मंत्रिमंडल में स्वतंत्र प्रभार राज्यमंत्री पद का ऑफर दिया था, जिसे अजित पवार ने स्वीकार नहीं किया. अजित पवार ने कहा कि प्रफुल्ल पटेल कैबिनेट मंत्री के तौर पर केंद्र में काम कर चुके है. ऐसे में स्वतंत्र प्रभार का पद लेना हमें ठीक नहीं लगा. इसीलिए हम रुकने के लिए कुछ दिन के लिए तैयार हैं, लेकिन हमें कैबिनेट मंत्री का पद चाहिए. इसीलिए मंत्रिमंडल में स्वतंत्र प्रभार राज्य मंत्री पद इनकार कर दिया. एनसीपी नेता प्रफुल्ल पटेल ने यही बात कही है.
महाराष्ट्र में सफल नहीं हुआ प्लान
महाराष्ट्र की सियासत में बीजेपी ने अजित पवार को जिस राजनीतिक मकसद के लिए साथ लाई थी, उसमें वो सफल नहीं रहे. अजित पवार की एनसीपी ने जिन चार सीटों पर चुनाव लड़ा उनमें से उसने केवल एक जीता है और कुल मिलाकर 3.6 प्रतिशत वोट शेयर हासिल किया है. महाराष्ट्र की 10 में से आठ सीटें जीतकर शरद पवार ने ‘कौन असली एनसीपी है’ इस बहस को पूरी तरह खत्म कर दी है. ऐसे अजित पवार और उनकी एनसीपी का सियासी भविष्य पर सवालिया निशान खड़े हो गए.
लोकसभा चुनाव नतीजे बाद बीजेपी के साथ हाथ मिलाने के अजित पवार दांव ने न केवल उनके साथ शामिल होने वाले एनसीपी विधायकों के भाग्य को खतरे में डाल दिया है. इतना ही नहीं बिहार में एक सीट जीतने वाले जीतनराम मांझी को कैबिनेट मंत्री बनाया गया है, लेकिन एनसीपी को मोदी सरकार में कैबिनेट पद की जगह पर स्वतंत्र प्रभार का ऑफर दिया था. इसे एनसीपी ने स्वीकार नहीं किया. अजित पवार ने भले ही शपथ ग्रहण समारोह में उपस्थित थे, लेकिन उनकी पार्टी का कोई भी मंत्री नहीं बना. ऐसे में अजित पवार और उनकी एनसीपी ऐसी स्थिति में कैसे पहुंची, जहां वह इस समय है?
अजित पवार की पूरी की थी हर मुराद
महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे के एनडीए से अलग होकर विपक्षी खेमे में जाने के बाद बीजेपी ने पहले शिवसेना के एकनाथ शिंदे को सिर्फ साथ ही नहीं मिलाया बल्कि सूबे की सत्ता की कमान सौंप दी. इसके बाद जून 2023 शरद पवार के खिलाफ तख्तापलट करने वाले अजित पवार ने अपने साथ मिलाया. अजीत पवार ने एनसीपी पर कब्जा कर लिया और महाराष्ट्र में बीजेपी के साथ हाथ मिलाकर उपमुख्यमंत्री बन गए.
एकनाथ शिंदे की शिवसेना को बहुत निराशा हुई, क्योंकि अजित पवार ने अपनी पार्टी के लिए महत्वपूर्ण विभाग ले लिए. अजित ने खुद डिप्टी सीएम बनने और वित्त मंत्रालय संभालने के साथ ही कैबिनेट में कृषि, खाद्य, उपभोक्ता मामले, महिला एवं बाल विकास, खेल, चिकित्सा शिक्षा और आपदा प्रबंधन जैसे अहम विभाग एनसीपी को दिया था. अजित पवार ने पुणे क्षेत्र के संरक्षक मंत्री का भी पदभार संभाला. बीजेपी ने अजित पवार को उनकी हर मुराद को पूरा किया.
चुनाव आयोग और स्पीकर के फैसलों से अजित पवार के गुट को पार्टी का नाम और ‘घड़ी’ चुनाव चिन्ह मिल गया. इसका इस्तेमाल ‘असली एनसीपी’ के तर्क को और मजबूत करने के लिए किया गया. बीजेपी यह मान रही थी कि अजित पवार महाराष्ट्र में उनके लिए सियासी मुफीद होंगे. लोकसभा चुनाव के लिए सीट-बंटवारे के दौरान अजित पवार को पार्टी को चार लोकसभा सीटें मिलीं थी. इससे पहले एनसीपी 19 सीटों पर चुनाव लड़ती रही है, जब अजीत पवार अपने चाचा शरद पवार के साथ थे.
2019 में बीजेपी और एनसीपी (संयुक्त) के बीच 8 सीटों पर सीधी लड़ाई थी, उस चुनाव में एनसीपी ने कांग्रेस के साथ हाथ मिला रखा था और बीजेपी का शिवसेना (संयुक्त) के साथ गठबंधन था. बीजेपी और एनसीपी के बीच 2019 में हुए सीधे मुकाबले वाली 8 सीटों में से सात सीटें बीजेपी जीती थी. इस बार के चुनाव में अजित पवार के अलग होने के बाद शरद पवार ने कुल 10 सीटों पर चुनाव लड़ा था, जिसमें से 8 सीटें जीती है. इनमें 5 सीटें वो हैं, जिन पर बीजेपी से मुकाबला था.
इलेक्शन रिजल्ट के बाद मचा घमासान
2024 के चुनाव नतीजे से स्पष्ट है कि एनसीपी के पारंपरिक वोट, जैसा कि अजित पवार के साथ गठबंधन बनाते समय देवेंद्र फड़णवीस को उम्मीद थी, बीजेपी को ट्रांसफर नहीं हुए. 2024 के लोकसभा चुनावों में शरद पवार की एनसीपी के शानदार प्रदर्शन अजित पवार के सियासी खुमार को खत्म कर दिया है. महाराष्ट्र बीजेपी को अपने खुद के संघर्षों का सामना करना पड़ा, क्योंकि उसने जिन 27 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ा था, उनमें से केवल नौ पर जीत हासिल की जबकि 2019 में उसे 23 सीट पर जीत मिली थी.
देवेंद्र फडणवीस की रणनीतियों को काफी हद तक राजनीतिक भूलों के रूप में देखा जा रहा है. उन्होंने आगामी चुनावों से पहले ‘बीजेपी की किस्मत को पुनर्जीवित करने के लिए पूरी तरह से काम करने’ के लिए डिप्टी सीएम पद से इस्तीफा देने की पेशकश की है. एनडीए गठबंधन में एकनाथ शिंदे की स्थिति मजबूत होती दिख रही है, क्योंकि तीनों पार्टियों में उनका स्ट्राइक रेट सबसे अच्छा है. साथ ही उद्धव ठाकरे की शिवसेना (यूबीटी) के साथ उनकी कड़ी टक्कर है.
शिंदे की शिवसेना ने उद्धव की शिवसेना से कम सीटों पर चुनाव लड़ने के बावजूद 13 प्रतिशत का महत्वपूर्ण वोट शेयर हासिल किया है. शिंदे की शिवसेना सात सीतें जीतने में सफल रही है, लेकिन अजित पवार की पार्टी एक सीट ही जीत सकी. सियासी नफा-नुकसान को देखते हुए बीजेपी ने अब अजित पवार की पार्टी को स्वतंत्र प्रभार राज्यमंत्री का ऑफर दिया था, क्योंकि लोकसभा में बीजेपी के लिए सियासी मुफीद नहीं रहे हैं. लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजे को देखने के बाद बीजेपी ने अजीत पवार की सियासी अहमियत को समझ लिया है और उसी के आधार पर मंत्री पद का ऑफर दिया.

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