WFI के नए अध्यक्ष के ‘जोश’ पर भारी पड़ा पहलवानों का रिएक्शन, सही रहा सरकार का फैसला

भारतीय कुश्ती महासंघ (WFI) की नई कार्यकारिणी सस्पेंड कर सही कदम उठाया गया है. साक्षी मलिक के आंसू व्यर्थ नहीं गए. न बजरंग पूनिया की फुफकार. कुश्ती महासंघ पर इतने आरोप थे और उसके खिलाफ लोगों में इतना गुस्सा था, कि देर-सबेर सरकार को WFI के नए पदाधिकारियों पर फैसला करना ही पड़ता. कुश्ती महासंघ के पूर्व अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह से देश के मेडल प्राप्त सभी पहलवानों में भारी गुस्सा था. महिला पहलवानों ने उन पर यौन दुष्कर्म के आरोप लगाये थे, इसलिए उनको अध्यक्ष पद से हटा दिया गया था.

बृजभूषण शरण सिंह के विरुद्ध इस साल जनवरी में हरियाणा की 19 महिला पहलवानों ने छेड़छाड़ और यौन दुष्कर्म के आरोप लगाये थे. इसमें से 12 महिलाओं ने बाद में अपने आरोप वापस ले लिये थे. किंतु सात महिलाएं अपने आरोपों पर दृढ़ रहीं. इनमें से ओलंपिक विजेता साक्षी मलिक भी थीं. बृजभूषण को हटाए जाने के बाद 21 दिसंबर को कुश्ती महासंघ के दोबारा चुनाव हुए. इसमें भी बृजभूषण शरण के करीबी लोग जीते.

अध्यक्ष पद पर संजय कुमार सिंह को 40 वोट मिले जबकि उनके प्रतिद्वंद्वी अनीता श्योराण को मात्र सात वोट. जीतते ही संजय कुमार सिंह ने अंडर-15 और अंडर-20 की राष्ट्रीय कुश्ती प्रतियोगिताएं गोंडा (उत्तर प्रदेश) में कराने का फैसला कर लिया. नव निर्वाचित अध्यक्ष भूल गए, कि उनको ऐसे फैसले करने का अधिकार ही नहीं है. उनकी जीत से आहत हो कर साक्षी मलिक ने कुश्ती छोड़ने की घोषणा कर दी और नंबर वन चैंपियन बजरंग पूनिया ने अपना पद्मश्री पुरस्कार वापस कर दिया. इसके फौरन बाद पैरा एथलीट वीरेंद्र सिंह ने भी पद्मश्री सम्मान वापस करने की घोषणा की. सरकार ने नियमों की अनदेखी करने के कारण कुश्ती संघ को तीन दिन बाद ही निलंबित कर दिया.

सरकार की हो रही थी किरकिरी

पिछले एक साल से पहलवानों और कुश्ती महासंघ की इस लड़ाई के कारण सरकार की खूब आलोचना हो रही थी. चूंकि विरोध करने वाले सारे पहलवान दिल्ली के नजदीक हरियाणा के हैं, इसलिए मीडिया में यह लड़ाई छायी रहती है. इसके अलावा कांग्रेस ने इस लड़ाई के जरिए बीजेपी सरकार को घसीटने में कोई कसर नहीं छोड़ रखी थी. यही कारण रहा तीन दिन पहले बनी कमेटी को सस्पेंड कर दिया गया.

निलंबित करने की वजह को नई कमेटी द्वारा कुश्ती महासंघ की नियमावली को पालन न करना बताया गया है. सरकारी सूत्रों के अनुसार WFI को भंग नहीं किया गया है, सिर्फ अगले आदेश तक के लिए निलंबित किया गया है. वे WFI के संविधानसम्मत नियमों और प्रक्रिया का पालन करें, फिर बहाल हो जाएंगे. साक्षी मलिक ने सरकार के इस फैसले पर कहा- देर आयद दुरुस्त आयद!

भारी पड़ गया नए अध्यक्ष का जोश!

कुश्ती महासंघ के संविधान की प्रस्तावना के खंड 3 (ई) में साफ कहा गया है कि कुश्ती महासंघ की कार्यकारी समिति जिन स्थानों को चिन्हित करेगी, महासंघ सिर्फ वहीं पर नेशनल चैंपियनशिप आयोजित कर सकती है. ऐसे में WFI के अध्यक्ष संजय कुमार सिंह की लिस्ट में गोंडा कहां से आ गया? संजय कुमार सिंह ने शायद अपने आका बृजभूषण शरण सिंह को खुश करने के लिए कुश्ती की राष्ट्रीय प्रतियोगिता के लिए गोंडा का चयन किया हो.

लेकिन जिस तरह से उन्होंने जीत के जश्न को साक्षी और बजरंग की हार के तौर पर मनाया, वही दांव उन्हें उलटा पड़ गया. मात्र तीन दिन के भीतर ही उनकी जीत मातम में बदल गई. सरकार को यह कदम इसलिए भी उठाना पड़ा क्योंकि सारे नामी और पदक प्राप्त पहलवान उनके विरोध में खड़े हो गए थे.

यद्यपि बृजभूषण शरण सिंह समर्थित उम्मीदवारों को भारी जीत मिली थी. लगने लगा था, कि कुश्ती महासंघ पर बृजभूषण शरण का जलवा बरकरार रहेगा. किंतु नवनिर्वाचित अध्यक्ष जीत को पचा नहीं पाये. उन्होंने आते ही WFI की आचार संहिता का उल्लंघन करना शुरू कर दिया. यह सामान्य बात नहीं थी कि संजय कुमार सिंह को अध्यक्ष पद के लिए 40 वोट मिले और अनीता श्योराण को महज 7, वह भी तब जब बजरंग पूनिया, विनेश और साक्षी मलिक का पूरा समर्थन अनीता को था. इसी खेमे के प्रेमचंद लोचब, देवेंद्र कादियान क्रमशः सचिव और वरिष्ठ उपाध्यक्ष चुने गये थे. इस बात में कोई शक नहीं कि बृजभूषण शरण सिंह ने भारतीय कुश्ती को खूब प्रोत्साहित किया. वे अपने पैसे से पहलवानों की मदद किया करते थे.

झगड़े के पीछे कांग्रेस के नेता

खुद साक्षी मलिक ने जब पदक प्राप्त किया था, तब भारत लौटते ही उन्होंने अपनी जीत का श्रेय WFI के तत्कालीन अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह को ही दिया था. उस समय विनेश भोगाट ने भी यह क्रेडिट अध्यक्ष को ही दिया था. WFI के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रहे जुबेद उर रहमान उर्फ बब्बन मियां बताते हैं, कि छह बार से सांसद रहे बृजभूषण शरण कुश्ती के लिए तन-मन-धन से मदद करते रहे हैं. अलबत्ता वे कोई बात छिपाते नहीं. यहां तक कि अपनी दबंगई भी नहीं. इसलिए उनके राजनीतिक शत्रु भी बहुत हैं. अन्यथा जो साक्षी और विनेश उनके गुण गाया करते थे, वही अचानक उन पर यौन दुष्कर्म जैसे घृणित आरोप लगा रहे हैं. बब्बन मियां तो स्पष्ट कहते हैं, कि इस विवाद के पीछे कांग्रेस के नेता हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री का हाथ है.

लेकिन कुछ भी हो सरकार बहुत दिनों तक बृजभूषण शरण सिंह के दामन पर लगे दागों से अपनी छवि ध्वस्त नहीं कर सकती थी. राजनीति में जो लोग हैं उन पर आरोप लगते ही हैं. उनसे निपटना ही राजनीतिक चातुर्य है, मगर बृजभूषण शरण सिंह ने इन आरोपों को काउंटर करने के लिए राजनीतिक कौशल दिखाने की बजाय बाहुबल दिखाया. उन्होंने मीडिया कर्मियों से भी बदतमीजी की. खुद को अपदस्थ किए जाने के बाद अपने करीबी को अध्यक्ष चुनवा लिया. परंतु वे महाशय अपनी मर्जी चलाने में अपने आका से भी दो कदम आगे निकल गए.

फैसला खिलाड़ियों के लिए शुभ

नतीजा यह हुआ कि WFI की नई कमेटी सस्पेंड कर दी गई. सरकार ने इस तरह अपने को इस कीचड़ से निकाल लिया. अब बृजभूषण शरण की जिम्मेदारी बनती है, कि वे सरकार की इस पहल का स्वागत करें. साथ ही कुछ दिन चुप बैठें. हालांकि उन्होंने कह दिया है, कि अब उनका WFI से कोई लेना-देना नहीं है.

सरकार के इस फैसले को साक्षी मलिक, विनेश और बजरंग पूनिया ने भी सराहा है. उन्हें लगता है, कि सरकार ने उनकी सुनी. बजरंग ने यहां तक कह दिया है, कि जो पद्मश्री उन्होंने लौटा दी थी उसे पुनः ग्रहण करेंगे. साक्षी मलिक ने कहा है, कि उनकी लड़ाई सरकार से नहीं बल्कि एक व्यक्ति से थी इसलिए वे सरकार के फैसले से खुश हैं. उन्हें लगता है, देर से ही सही सरकार ने सही कदम उठाया.

विनेश फोगाट ने भी WFI के निलंबन को सही बताया है. उन्होंने WFI के अध्यक्ष पद के लिए किसी महिला को चुने जाने की बात कही है. उनके अनुसार कोई महिला यदि WFI की अध्यक्ष बनेगी तो महिला पहलवानों को सम्मान मिलेगा. कांग्रेस नेता उदित राज ने सरकार के इस फैसले का स्वागत किया तथा यह भी कहा, कि यह आंखों में धूल झोंकने जैसा है. कुछ भी हो लेकिन सरकार ने दखल देकर यह विवाद समाप्त करवा दिया. यह भारतीय खेल और खिलाड़ियों के लिए शुभ है.

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