अरशद नदीम और नीरज चोपड़ा का हुआ डोप टेस्ट, कब और कैसे होती ये जांच?
पेरिस ओलंपिक 2024 में पाकिस्तान के एथलीट अरशद नदीम ने जैवलिन थ्रो के फाइनल में ऐतिहासिक प्रदर्शन किया. उन्होंने 92.97 मीटर का थ्रो किया और इसकी बदौलत गोल्ड मेडल जीतकर इतिहास रचा. अब पेरिस से एक बड़ी खबर सामने आई है. पाकिस्तानी जर्नलिस्ट की मानें तो अरशद नदीम की जीत के बाद उनका स्टेडियम में डोप टेस्ट किया गया. इस टेस्ट के लिए वो 2 से 3 घंटे तक स्टेडियम में रहे. वहीं नीरज चोपड़ा को 89.45 मीटर के थ्रो के साथ सिल्वर मेडल से संतोष करना पड़ा. इसके अलावा 88.54 मीटर के थ्रो के साथ ग्रेनाडा के एंडरसन पीटर्स तीसरे स्थान पर रहे और ब्रॉन्ज मेडल अपने नाम किया. रिपोर्ट के मुताबिक, अरशद के साथ इन दोनों एथलीट्स की भी जांच हुई. आखिर इन तीनों विजेताओं की जांच क्यों हुई और क्या है ये टेस्ट? आइये विस्तार से जानते हैं.
क्या है डोप टेस्ट?
ओलंपिक जैसे बड़े टूर्नामेंट में कई खिलाड़ी अपने प्रदर्शन को बेहतर करने के लिए बैन हुए ड्रग्स या किसी पदार्थ का इस्तेमाल कर लेते हैं. एथलीट्स कई बार साइकोएक्टिव दवाओं का इस्तेमाल करते हैं, जिसका दिमाग पर असर होता है. ये दवाएं खिलाड़ियों के मूड, अवेयरनेस, फीलिंग्स और बिहेवियर पर प्रभाव डालती हैं, जिससे फाइनल जैसे मुश्किल और दबाव वाली परिस्थिति में खिलाड़ी अपनी क्षमता से ज्यादा खेलने में सक्षम हो जाते हैं. ऐसी ही चीटिंग को रोकने के लिए डोप टेस्ट किया जाता है. खेल में ये काम वर्ल्ड एंटी डोपिंग एजेंसी (WADA) यानी ‘वाडा’ करती है ताकि कोई भी खिलाड़ी गलत तरीके से अपने प्रदर्शन को बेहतर न करें और निष्पक्ष मुकाबले के बाद सही हकदार को ही मेडल मिले.
कैसे होता है डोप टेस्ट?
अब सवाल ये है कि आखिर ये टेस्ट होता कैसे है? असल में शरीर में मौजूद तरल पदार्थों के जरिए ये डोप टेस्ट किया जा सकता है. इसके लिए टेस्टिंग एजेंसी एथलीट्स के शरीर से यूरिन, सलाइवा, पसीना और ब्लड सैंपल का इस्तेमाल करती है. इसके अलावा बाल और नाखून के भी सैंपल लिए जा सकते हैं. हालांकि, डोपिंग की जांच के लिए आमतौर पर यूरिन के सैंपल का इस्तेमाल किया जाता है.
डोपिंग टोस्ट दो तरह के होते हैं. सबसे पहले इम्यूनोएसे के जरिए एक स्क्रीनिंग टेस्ट किया जाता है. इस प्रक्रिया में किसी खास प्रोटीन या दूसरे पदार्थों का पता लगाया जाता है. ये प्रक्रिया बहुत तेज होती है और प्रेग्नेंसी टेस्ट की तरह कुछ ही मिनटों में रिजल्ट मिल जाता है. इसके अलावा गैस क्रोमैटोग्राफी-मास स्पेक्ट्रोफोटोमेट्री (GSMS) प्रक्रिया के जरिए टेस्ट किया जाता है. ये एक ऐसी टेक्निक है, जिसके जरिए शरीर में मौजूद केमिकल और उसकी मात्रा को पहचान करके, उसका विश्लेषण किया जाता है. ये टेस्ट करना थोड़ा मुश्किल काम है, इसलिए थोड़ा महंगा भी होता है. इसमें समय भी ज्यादा लगता है. एथलीट्स से सैंपल लेने के बाद एक खास तरह की लैबोरेटरी में उनकी जांच की जाती है.
वाडा ने किन ड्रग्स या पदार्थों को बैन किया है?
वाडा की जिम्मेदारी है कि वह हर साल बैन किए हुए ड्रग्स या पदार्थों की लिस्ट निकाले. वाडा ये काम दो आधार पर करता है. सबसे पहले वो पदार्थ जो खेल में प्रदर्शन को बेहतर करते हों और दूसरा जो एथलीट्स के स्वास्थ्य पर असर डालते हों. इसके अलावा एंड्रोजेन्स, ब्लड डोपिंग, पेपटाइड हॉर्मोन्स, नार्कोटिक्स जैसी कई कैटेगरी भी हैं. इनके तहत पूरी लिस्ट तैयार की जाती है. बता दें एथलीट्स के लिए हेरोइन, मॉर्फिन, कोडीन, ब्यूप्रेनोर्फिन और ट्रामाडोल जैसे ड्रग और अन्य कई पदार्थों को वाडा ने बैन किया हुआ है.
कब और कहां होता है डोपिंग टेस्ट?
ओलंपिक में डोपिंग टेस्ट कहीं और कभी भी किया जा सकता है. वाडा के एंटी-डोपिंग के नियम अनुसार, नेशनल और इटंरनेशनल लेवल पर भाग ले रहे खिलाड़ियों को इसके लिए तैयार रहना होता है. आम तौर पर हर मेडल इवेंट के बाद ये टेस्ट किया जाता है. ये एक आम प्रकिया है. इसलिए अरशद नदीम, नीरज चोपड़ा और एंडरसन पीटर्स को इस टेस्ट के लिए स्टेडियम में रुकना पड़ा.
डोपिंग में पकड़े जा चुके हैं ये एथलीट्स
डोपिंग में पॉजिटिव पाए जाने वाले खिलाड़ियों की लिस्ट बहुत लंबी है, जिन्होंने इसके जरिए अपना प्रदर्शन बेहतर करने की कोशिश की. इसका पहला मामला 1968 के मेक्सिको ओलंपिक में देखने को मिला था. स्वीडन के रेसलर हैंस-गन्नार लिलजेनवाल ब्रॉन्ज मेडल बाउट के दौरान बैन किए पदार्थ का इस्तेमाल करते हुए पकड़े गए थे. इसके बाद उन्हें डिस्क्वालिफाई कर दिया गया था. बात करें पेरिस ओलंपिक की तो इराक के जूडो खिलाड़ी सज्जाद सहन और नाइजीरिया की बॉक्सर सिंथिया ओगुनसेमिलोर को टेस्ट में पॉजिटिव पाए जाने के बाद डिस्क्वालिफाई किया जा चुका है.