खरगे, मोदी, राहुल, परंपरा और नियम…संसद में स्पीकर-सभापति के कामकाज पर क्यों उठ रहे सवाल?

संसद में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर जब प्रधानमंत्री बोल रहे थे तो लोकसभा में राहुल गांधी ने उन्हें टोकने की कोशिश की, लेकिन उन्हें स्पीकर ने इसकी इजाजत नहीं दी. इसी तरह का वाकया राज्यसभा में भी देखने को मिला, जब नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खरगे प्रधानमंत्री के भाषण के बीच में कुछ बोलना चाहते थे और सभापति ने उन्हें बैठा दिया.
हालांकि, इसके ठीक उलट राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खरगे के भाषण के दौरान देखने को मिला. लोकसभा में जब राहुल भाषण दे रहे थे तो उस वक्त प्रधानमंत्री से लेकर गृह मंत्री और रक्षा मंत्री तक को उनके भाषण के बीच में बोलने का मौका दिया गया. राज्यसभा में खरगे के भाषण के बीच में रेल मंत्री को बोलने की इजाजत दी गई.
अब संसद सत्र के बाद सदन की यह व्यवस्था सवालों के घेरे में है. सवाल पूछा जा रहा है कि आखिर प्रधानमंत्री और नेता प्रतिपक्ष को लेकर स्पीकर का रवैया दोहरा क्यों है? क्या संसद की कार्यवाही में ऐसा कोई नियम है, जिससे नेता सदन और नेता प्रतिपक्ष के बोलने में स्पीकर फर्क कर सकता है?
आइए इस स्पेशल स्टोरी में इन्हीं नियमों और परंपराओं के बारे में विस्तार से जानते हैं…
1. संसद का संचालन कैसे किया जाता है?
भारत में संसद को लोकसभा, राज्यसभा और राष्ट्रपति तीन भागों में बांटा गया है. राष्ट्रपति लोकसभा और राज्यसभा के प्रमुख होते हैं. लोकसभा संचालन का अधिकार अध्यक्ष और राज्यसभा के संचालन का अधिकार सभापति को है. देश के उपराष्ट्रपति राज्यसभा के सभापति होते हैं.
संसदीय नियम प्रक्रिया और पुराने परंपरा के तहत इसका संचालन किया जाता है. आखिरी फैसला बहुमत के आधार पर लोकसभा के अध्यक्ष या राज्यसभा के सभापति लेते हैं. संसद के फैसलों की न्यायिक समीक्षा भी होती है.
2. राष्ट्रपति का अभिभाषण क्या है?
संविधान के अनुच्छेद 87 और 88 में इसका जिक्र है. लोकसभा के गठन या प्रत्येक साल बजट सत्र के शुरू होते ही संसद में राष्ट्रपति का अभिभाषण होता है. राष्ट्रपति का अभिाभषण सरकार का बयान और रोडमैप होता है. राष्ट्रपति अपना अभिभाषण संयुक्त सत्र में देते हैं.
अभिभाषण में उन मुद्दों को शामिल किया जाता है, जिस पर या तो सरकार ने काम किया हो या प्रस्तावित हो. राष्ट्रपति ज्वलंत मुद्दों को भी अपने अभिभाषण में शामिल करते हैं. राष्ट्रपति अभिभाषण के वक्त उनके बाएं तरफ लोकसभा के स्पीकर और दाएं तरफ राज्यसभा के सभापति होते हैं.
राष्ट्रपति के अभिभाषण के बाद संसद में धन्यवाद प्रस्ताव पेश किया जाता है. आमतौर पर सत्ता पक्ष इस प्रस्ताव का समर्थन करता है और विपक्ष विरोध. प्रस्ताव के बाद वोटिंग की प्रक्रिया होती है.
हालांकि, यह जरूरी नहीं है कि धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा हो. साल 1996 में जब लोकसभा का गठन हुआ, तब देश में अटल बिहारी वाजपेई की सरकार बनी. राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने अपना अभिभाषण पढ़ा, लेकिन 13 दिन में ही सरकार गिर जाने की वजह से इस पर चर्चा नहीं हो पाई.
3. संसद में बोलने को लेकर क्या नियम है?
संसद में 3-4 मौके ही ऐसे आते हैं, जब बहस में सांसदों को बोलने का मौका मिलता है. इनमें राष्ट्रपति का अभिभाषण, बजट सत्र, किसी विषय पर बहस और अविश्वास प्रस्ताव. इन बहसों में सबसे आखिर में प्रधानमंत्री बोलते हैं.
लोकसभा नियमावली के मुताबिक जब इन मुद्दों पर बहस होना होता है, तो स्पीकर सबसे पहले टाइम डिसाइड करते हैं. इसी के आधार पर बहस की कार्यवाही पूरी की जाती है. प्रधानमंत्री की सलाह पर लोकसभा के स्पीकर बहस के लिए समय डिसाइड करते हैं.
किसी भी बहस की शुरुआत सत्ता पक्ष के सदस्यों द्वारा की जाती है. इसके बाद विपक्ष के नेता को मौका दिया जाता है. किसी भी बहस में कौन किस पार्टी से बोलेगा, इसका तय संसदीय दल के नेता की सिफारिश पर स्पीकर करते हैं.
किसी भी बहस के दौरान कौन कितना देर बोलेगा, यह तय समय और सांसदों की संख्या के आधार पर तय किया जाता है.
राष्ट्रपति के अभिभाषण पर बहस होने का जिक्र संविधान के अनुच्छेद 87 और 88 में है. इसी को आधार बनाकर लोकसभा की नियमावली 20 में बहस कराई जाती है. राज्यसभा के रूलबुक में भी इसका प्रावधान है.
हालांकि, राज्यसभा में यह कार्यवाही एक दिन की देरी से चलती है. यानी सोमवार को अगर लोकसभा में प्रधानमंत्री बोलते हैं तो राज्यसभा में राष्ट्रपति अभिभाषण पर प्रधानमंत्री का संबोधन उसके ठीक एक दिन बाद यानी मंगलवार को होता है. धन्यवाद प्रस्ताव पर बहस के दौरान कोई सदस्य राष्ट्रपति पर टीका-टिप्पणी नहीं कर सकते हैं.
4. पीएम या नेता प्रतिपक्ष को कोई अधिकार प्राप्त है?
संसद में प्रधानमंत्री को सदन का नेता माना जाता है. विपक्ष के नेता वो होते हैं, जो सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के नेता होते हैं. प्रतिपक्ष के लिए कुल सीटों का 10 प्रतिशत सीटों का होना अनिवार्य है.
संसद में बोलने का नियम क्या है? इस सवाल के जवाब में राज्यसभा के पूर्व सांसद अली अनवर अंसारी टीवी-9 डिजिटल से बात करते हुए कहते हैं- आमतौर पर जब भी कोई सदस्य बोलता है, तो सबको उसकी बात को गंभीरता से सुननी होती है. सत्ता पक्ष उसे रिकॉर्ड भी करता है.
अली अनवर के मुताबिक यह शुरू से ही परंपरा रही है कि जब प्रधानमंत्री और नेता प्रतिपक्ष बोलते हैं तो उसमें टोका-टाकी न हो. दोनों के भाषण को पद और देश के लिहाज से गंभीर माना जाता है. हां, अगर दोनों में से कोई किसी के भाषण के बीच में बोलना चाहते हैं तो पहले स्पीकर उन्हें बोलने की इजाजत देते थे. अब तो ऐसा नहीं होता है.
अली अनवर आगे कहते हैं- संसद में परंपरा बनाए रखने का काम स्पीकर और सभापति का होता है. बाबा साहेब ने भी कहा था कि कितना भी बढ़िया संविधान या नियम बना दीजिए. अगर उसका पालन करने वाला ठीक नहीं होगा, तो उसका कुछ नहीं हो सकता है. यही हाल संसद की परंपरा का है.

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