पति-पत्नी की एक छोटी सी गलती का खामियाजा 18 साल तक भुगतना पड़ता है बच्चे को!
पति-पत्नी के बीच आपसी विवाद का खामियाजा नाबालिग बच्चे को ही भुगतना पड़ता है. देश में लाखों नाबालिग बच्चे ऐसे हैं, जिनका पासपोर्ट मां-बाप की लड़ाई के कारण सालों से अटका पड़ा है. ज्यादातर मामलों में बच्चों के बालिग होने का इंतजार किया जा रहा है. हालांकि, इन बच्चों को 18 साल की उम्र होने के बाद माता-पिता की सहमति जरूरत नहीं पड़ती है. लेकिन, हाल के वर्षों में कोर्ट के कुछ ऐसे फैसले आए हैं, जिससे कई नाबालिगों के चेहरे पर मुस्कान लौटी है. बता दें कि देश के हर क्षेत्रीय पासपोर्ट कार्यलयों में ऐसे मामलों की भरमार है. अगर दिल्ली-एनसीआर की बात करें तो यहां भी हजारों बच्चे हैं, जिनका पासपोर्ट माता-पिता के विवाद से अटका हुआ है.
गाजियाबाद पासपोर्ट ऑफिस में 2000 से भी अधिक इस तरह के मामले लंबित हैं. गाजियाबाद क्षेत्रीय कार्यालय में उत्तर प्रदेश के 13 जिलों के सैकड़ों बच्चों का पासपोर्ट सालों से नहीं बन पा रहा है. बच्चों की कस्टडी पर मामला फंस जाता है. अगर पति की सहमति मिलती है तो पत्नी की असहमति हो जाती है और अगर पत्नी की आती है तो पति असहमत हो जाता है.
लाखों बच्चों का पासपोर्ट नहीं बन रहा हैगाजियाबाद क्षेत्रीय पासपोर्ट कार्यालय के मुताबिक, गाजियाबाद पासपोर्ट कार्यालय में यूपी के 13 जिलों के पासपोर्ट जारी किए जाते हैं. गाजियाबाद क्षेत्रीय कार्यालय में रोजाना 2000 से ज्यादा लोग पासपोर्ट के लिए आवेदन करते हैं. इनमें ऐसे भी आवेदन आते हैं, जिसमें पति-पत्नी के बीच विवाद चल रहा होता है और उनके बच्चे भी अलग-अलग रहते हैं. इन मामलों में बच्चों के पासपोर्ट बनाने के लिए दोनों पति-पत्नी से शपथ पत्र देने के लिए कहा जाता है. अगर पति-पत्नी के विवाद का मामला कोर्ट में है तो ऐसे मामलों में कोर्ट का आदेश जरूरी होता है.
बच्चे का पासपोर्ट बनाने के दौरान इस तरह के मामलों में कोर्ट का आदेश स्पष्ट होना चाहिए कि नाबालिग बच्चे की कस्टडी किस के पास है. आदेश में यह भी लिखा होना चाहिए कि बच्चे का पासपोर्ट बनने पर पति-पत्नी को कोई आपत्ति नहीं है. ऐसे मामलों में नाबालिग के माता-पिता की सहमति के बिना पासपोर्ट जारी नहीं होता. अगर माता-पिता की सहमति नहीं होती है तो बच्चे को 18 साल यानी बालिग होने का इंतजार करना पड़ता है ।