चीन के पुलों के आगे कहीं नहीं टिकता हमारा अटल सेतु, इन्फ्रास्ट्रक्चर में भारत को अभी लंबा रास्ता तय करना है

चीन को पछाड़कर भारत दुनिया का सबसे तेजी से विकास करने वाला बड़ा देश बन गया है। इससे देश में उत्साह का माहौल है। धूम-धड़ाके के साथ कई प्रोजेक्ट्स का उद्घाटन किया जा रहा है। पिछले हफ्ते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अटल सेतु (Atal Setu, Mumbai) का उद्घाटन किया। यह पुल मुंबई को नवी मुंबई से जोड़ता है और इस देश का सबसे बड़ा समुद्री पुल बताया जा रहा है। इसमें कोई शक नहीं है कि भारतीय मानकों के हिसाब से यह बड़ी उपलब्धि है। लेकिन हमें विनम्रता के साथ यह स्वीकार करना चाहिए कि जहां तक पुलों का सवाल है तो हम अब भी दूसरे देशों से कहीं पीछे हैं। दुनिया का सबसे बड़ा समुद्री पुल चीन ने बनाया है। यह हॉन्ग कॉन्ग और मकाऊ को जोड़ता है। यह अटल सेतु से ज्यादा महत्वाकांक्षी है और टाइफून को सहने में सक्षम है। उस इलाके में टाइफून आना आम बात है ।

हॉन्ग कॉन्ग-मकाऊ लिंक 55 किमी लंबा है जबकि अटल सेतु की लंबाई 21.8 किमी है। दोनों पुलों में जमीन वाला हिस्सा भी शामिल है। हॉन्ग कॉन्ग-मकाऊ लिंक में समुद्री हिस्सा 22.9 किमी है जबकि अटल सेतु के मामले में यह 16.5 किमी है। इसी तरह जियाओझू समुद्री पल 42.5 किमी लंबा है। 2011 में जब इसे खोला गया था तो यह सबसे बड़ी समुद्री पुल था। 35.7 किमी लंबे हेंगजू बे ब्रिज को 2008 में खोला गया था। शंघाई को यांगशान बंदरगाह से जोड़ने वाला दोंगहाई ब्रिज 32.5 किमी लंबा है। इसी तरह जिनतांग द्वीप को झेनहाई प्रांत से जोड़ने वाला जिनतांग ब्रिज 26 किमी लंबा है। चीन के बड़े-बड़े इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स के लिए जाना जाता है लेकिन दूसरे देश भी पीछे नहीं हैं। मलेशिया में पेनांग द्वीप को मुख्यभूमि से जोड़ने के लिए 24 किमी लंबा पुल बनाया गया है जिसे 2024 में खोला गया था। इसी तरह बहरीन सऊदी अरब के तट से बहुत दूर एक द्वीप है। 1986 से दोनों देशों को जोड़ने के लिए 25 किमी लंबा किंग फहद कॉजवे बनाया गया है। ब्रूनेई में सुल्तान हाजी उमर अली सैफुद्दीन ब्रिज 30 किमी लंबा है। इसे साल 2020 में खोला गया था।

स्विस रेलवे

भारत को इस बात पर गुमान था कि आजादी के समय उसका रेल नेटवर्क अमेरिका और रूस के बाद तीसरा सबसे बड़ा था। तब चीन का रेल नेटवर्क बहुत छोटा और बिखरा हुआ था। आज इसका नेटवर्क 150,000 किमी लंबा है जबकि भारत का 68,000 किमी है। चीन ने मध्य एशिया के रास्त पश्चिमी यूरोप को जोड़ने के लिए नेटवर्क बना लिया है। साथ ही उसने बीजिंग को ल्हासा से जोड़ने के लिए तिब्बत में रेल लाइन बना ली है। यह लाइन इतनी ऊंचाई पर है कि यात्रियों को ऑक्सीजन लेनी पड़ती है। इस साल उधमपुर-श्रीनगर-बारामूला रेल लिंक के शुरू होने की उम्मीद है। यह कश्मीर घाटी को बाकी देश से जोड़ेगा। लेकिन यह उपलब्धि आजादी के 76 साल बाद मिलने जा रही है। यह स्थिति तब है जबकि कश्मीर को उच्च सुरक्षा प्राथमिकता माना जाता है। इसमें कोई शक नहीं है कि हिमालय का इलाका बेहद मुश्किल है। लेकिन कई देशों ने इससे भी ज्यादा दुर्गम पहाड़ों पर रेल पहुंचाई है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण स्विट्जरलैंड है। आज यह एक अमीर देश है लेकिन 19वीं शताब्दी में ऐसा नहीं था। तब ऐसी हालत थी कि स्विट्जरलैंड के बेरोजगार युवा पैसों के लिए विदेशी सेना की तरफ से लड़ने को तैयार रहते थे। जॉर्ज बर्नार्ड शॉ के मशहूर नाटक Arms and the Man में इसी तरह के एक युवक का उल्लेख है। लेकिन जब यूरोप में रेलवे का निर्माण शुरू हुआ तो स्विट्जरलैंड ने जल्दी ही इसमें महारत हासिल कर ली और हर खड़ी चढ़ाई पर ट्रैक बना लिए।

इसका सबसे शानदार उदाहरण युंगफाउयो ट्रेन है। इसे स्विट्जरलैंड की सबसे ऊंची पहाड़ियों में से एक Eiger-Monch-Jungfrau रेंज में चट्टान पर ड्रिलिंग करके बनाया गया है। यह रेलवे सुरंग 6,762 फीट की ऊंचाई पर शुरू होती है और खड़ी चढ़ाई के बाद 11,362 फीट की ऊंचाई पर निकलती है। यह चट्टान पर 4,500 फीट की ऊंचाई चढ़ती है। इसके जरिए यात्री आल्प्स के टॉप पर पहुंचकर स्कीइंग जैसे खेलों का लुत्फ उठा सकते हैं। इस रेलवे को बनाने का काम 1896 में शुरू हुआ था और 1912 में जाकर यह काम पूरा हुआ। एक शताब्दी बाद भी इसमें यात्रा करने बेहद रोमांचकारी अनुभव देता है। इससे पता चलता है कि 1896 में भी पहाड़ों पर रेल लाइन बनाने का काम कितना एडवांस्ड था। अब स्विट्जरलैंड आल्प्स में कई सुरंगें बना ली हैं जिससे दक्षिण में इटली तक हाई स्पीड रेल और रोड कनेक्टिविटी आसान हुई है। चीन ने एक और महत्वाकांक्षी योजना बनाई है। वह ल्हासा और काठमांडू को जोड़ने के लिए हिमालय में सुरंगों का जाल बिछाना चाहता है। भारत को अभी वहां तक पहुंचने के लिए लंबा रास्ता तय करना होगा।

Similar Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *