दुनिया में कम दिखता है नीला रंग, क्या आपने भी किया है गौर, आखिर क्यों है ऐसा?

अगर आपसे कहा जाए कि दुनिया में सबसे कम दिखने वाला रंग कौन सा है तो आप क्या कहेंगे. क्या आप मानेंगे कि यह नीला रंग है. यह सुनते ही शायद मेरी तरह, आपके भी मन में नीला आसामान और नीले रंग के महासागरों की तस्वीर छा जाएगी. फिर आप कहेंगे कि कई पक्षी के पंख भी तो नीले रंग के दिखते हैं. लेकिन वैज्ञानिक कहते हैं कि दुनिया में नीला रंग वाकई में कम दिखता है. आइए जानते हैं कि वैज्ञानिक ऐसा क्यों कहते हैं और इसकी पीछे का सच क्या है.

कम ही बनता है नीला रंग

वैज्ञानिक दरअसल दावा करते हैं कि प्रकृति में नीला रंग बनता ही बहुत कम है. वैज्ञानिक कहते हैं कि दुनिया मे जितना भी नीला रंग दिखता है, उसमें से बहुत ही कम नीला रंग बनता है, बाकी केवल नीला दिखता है. जिसके पीछे एक खास प्रक्रिया होती है. वैज्ञानिक कहते हैं कि केवल कुछ ही बड़े जानवर नीला पिग्मेंट बना पाते हैं, जबकि दूसरे जानवर और पौधे “स्ट्रक्टरल कलरेशन”से नीले रंग का अहसास पैदा करते हैं.

कम क्यों बनता है नीला?

तो पहले नीले रंग के पैदा होने की बात को समझें. इस रंग का पिग्मेंट, यानी वह पदार्थ जो इस रंग के लिए जिम्मेदार होता है, बहुत कम बन पाता है. क्योंकि यह रंग पैदा करने वाला पिग्मेंट बहुत जल्दी दूसरे पदार्थ में बदल जाता है. इस कारण पौधे दूसरे पिग्मेंट का उपयोग करते हैं. चूंकि जानवर भी पौधे ही खाते हैं इसलिए उन्हें भी नीला पिंग्मेंट नहीं मिलता है.

खास तरह की प्रक्रिया

जानवरों में स्ट्रक्चरल कलरेशन की प्रक्रिया होती है जिससे वे नीले दिखते हैं. ऐसा पक्षियों में अधिक होता है. इसमें पंख या फूल की पंखुड़ी पर बहुत ही महीन बनावट होती हैं एक दूसरे के इतने पास होती हैं जिससे लाइट ऐसे रिफ्लेक्ट होती है कि दूर से दिखने पर चीज नीली दिखती है. जब वह चीज नीली होती नहीं है. मोर के पंख और उसका गला इसी की मिसाल हैं.

इस तरह से देखा जाए तो यह सच है प्रकृति में नीला रंग सबसे कम बनाता है, फिर भी की पक्षी अपने पंखों को खास तरीके से नीला दिखा देते हैं. उनके पंख बने ही ऐसे होते जिससे लाल रंग के नहीं दिखते हैं, बल्कि वे नीले दिखते हैं.

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