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Edible Oil Price: चुनाव से पहले कम होंगे खाद्य तेलों के दाम, सरकार ने कहा सस्ता आयात कर महंगा बेचना नहीं चलेगा

इस समय अंतरराष्ट्रीय बाजार में खाद्य तेलों के दाम नरम हैं। तब भी घरेलू बाजार में खाद्य तेलों के दाम कम नहीं हो रहे हैं। बीते दिसंबर में तो दाम में कुछ कमी हुई थी, लेकिन इस साल जनवरी में तो खाद्य तेलों के दाम फिर से बढ़ गए हैं। अगले कुछ महीने में देश में आम चुनाव होना है। इसलिए सरकार खाद्य तेलों के दाम पर बेहद सतर्क है। तभी सरकार की तरफ से कूकिंग ऑयल कंपनियों को प्रोडक्ट की कीमत इंटरनेशनल प्राइस के तर्ज पर घटाने को कहा गया है।

क्या कहा है सरकार ने

हमारे सहयोगी ईटी ने साल्वेंट एक्सट्रेक्टर्स एसोसिएशन (Association of Solvent Extractors) के हवाले से यह खबर दी है। केंद्र सरकार के उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय ने इन कंपिनयों को कहा है कि इंटरनेशनल मार्केट में जिस तरह से खाद्य तेलों की कीमतें घट रही हैं, उसी तरह से घरेलू बाजार में भी कीमतें घटनी चाहिए। हालांकि इन कंपनियों ने फिलहाल दाम में कटौती में असमर्थता जताई है। उनका कहना है कि अगले महीने से सरसों की कटाई शुरू होगी। नई फसल आने के बाद ही कीमतों में कमी संभव है। मतलब कि मार्च तक कीमतें यथावत रहेंगी।

क्या कहना है कंपनियों का

सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष अजय झुनझुनवाला ने सदस्यों को भेज एक पत्र में कहा है “उपभोक्ता मामले के मंत्रालय ने व्यक्त किया है कि सोयाबीन, सूरजमुखी और पाम तेल जैसे तेलों पर एमआरपी अंतरराष्ट्रीय कीमतों में कमी की सीमा तक कम नहीं की गई है।” मतलब साफ है कि कीमतों में तत्काल कमी हो।

हालांकि, उद्योग के अधिकारियों ने कहा है कि कीमतों में तत्काल कमी की गुंजाइश कम है। अडानी विल्मर के सीईओ अंशु मलिक ने कहा, “खाना पकाने के तेल की कीमतें बहुत स्थिर हैं। कीमतों में कोई भारी वृद्धि या कमी नहीं हुई है। हमारी एमआरपी हर महीने मौजूदा मूल्य रुझानों के अनुरूप सही की जाती है। हमें कीमतों में तत्काल सुधार की उम्मीद नहीं है।” अडानी विल्मर, जो ‘फॉर्च्यून’ ब्रांड के तहत खाना पकाने का तेल बेचती है। हालांकि उनका कहना है कि वे इंटरनेशनल कमोडिटी प्राइस पर नजर रखते हैं और उसी के हिसाब से फैसले लेते हैं।

कितनी घट सकती है कीमतें

वेजेटेबल ऑयल ब्रोकरेज कंपनी सनविन ग्रुप के सीईओ संदीप बाजोरिया ने बताया, ‘दिसंबर में खाद्य तेल की कीमतों में करीब 10% की गिरावट आई थी और जनवरी में कीमतें फिर से 8% बढ़ गई हैं।’ विभिन्न कंपनियों के अधिकारियों का कहना है कि यदि सरकार ने ज्यादा जोर डाला तो कीमतों में केवल 3-4% की कटौती कर पाएंगी।

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