रेलवे द्वारा आपके सीट की बुकिंग कैसे के जाती है? जगह खाली होने पर दूसरे डब्बे में क्यों भेज दिया जाता है?

रेलवे आपके सीट की बुकिंग कैसे करता है?

ट्रेन से सफर करने का अनुभव लगभग हर किसी ने किया है। किसी पास की जगह जाना हो तो ट्रेन में रिजर्वेशन की खास जरूरत नहीं पड़ती, आप जनरल बोगी में भी सफर कर सकते हैं, लेकिन अगर दूर का सफर हो, जिसमें 8-10 घंटों का समय लगे, तो ज्यादातर लोग रिजर्वेशन करना सही समझते हैं।

कैसे होता है सीट डिस्ट्रिब्यूशन

ऐसे में अगर आपको पहले से पता हो कि आपको कहीं जाना है, तो आप कई दिनों पहले ट्रेन की टिकट बुक करा लेते हैं। इसके बाद जब आप ट्रेन में बैठते हैं, तो आप देखते हैं कि इतने दिनों पहले ट्रेन की टिकट बुक करने के बाद भी आपको बीच की बोगी या बीच की सीट मिली है या फिर ये मान लें कि आपने काफी लेट से रिजर्वेशन कराया है, लेकिन फिर भी आपको सबसे सामने की बोगी में सीट मिली हो। ऐसे में आपके मन में सवाल तो आता ही होगा। आज के इस लेख में हम पको आपके इन्हीं सवालों का जवाब देने वाले हैं, कि आखिर रेलवे किस तरह से टिकटों की बुकिंग करता है।

दरअसल, भारतीय रेलवे की ट्रेनो में रिजर्वेशन के लिये एक सॉफ्टवेयर होता है, जिसकी डिजाइनिंग ही इस आधार पर की जाती है कि ट्रेन की किसी भी बोगी में कम या ज्यादा भार ना हो। यानी कि ना तो किसी बोगी में ज्यादा पैसेंजर हों और ना ही किसी में कम। सभी बोगियों में समान रूप से भार विभाजित किया जाता है।

किसे मिलेगी कौन सी सीट

उदाहरण के तौर पर मान लीजिये आपने काफी दिनों पहले अपना रिजर्वेशन करवा लिया है या आप उस दिन के लिये उस ट्रेन में टिकट बुक कराने वाले पहले व्यक्ति हैं, तो सॉफ्टवेयर के जरिये आपके बीच की बोगी में बीच की सीट दी जायेगी। जैसे कि S1 से लेकर S10 की बोगियों के बीच आपको S5 की बोगी में सीट दी जायेगी। अगर उस बोगी में 70 सीटें हैं, तो आपके 35 नंबर सीट दी जायेगी।

इससे ये स्पष्ट हुआ कि सबसे पहले टिकट बुक करने वाले व्यक्ति को सॉफ्टवेयर बीच की बोगी में बीच की सीट देगा और इसके बाद इसी अनुसार पूरी ट्रेन की बोगियों में रिजर्वेशन किया जायेगा।

कौन सी बर्थ किसे दी जायेगी

बात करें बर्थ की, तो सबसे पहले सॉफ्टवेयर नीचे की सीटों को भरता है और बाद में रिजर्वेशन करवाने वाले लोगों को ऊपर की सीटें दी जाती है, ताकि कम गुरुत्वाकर्षण केंद्र प्राप्त किया जा सके।

ट्रेन में बनाना होता है संतुलन

इस तरह से ये सॉफ्टवेयर सुनिश्चित करता है कि सभी बोगियों में यात्रियों की संख्या समान हो। इसका उद्देशय सिर्फ ट्रेन में संतुलन को बनाये रखना है। वो इस लिये क्योंकि रेल लगभग 100 किमी / घंटा की गति से चलती है। इसमें काफी बल और यांत्रिकी काम करते हैं। ऐसे में टच्रेन में संतुलन जरूरी है। किसी भी बोगी में अगर ज्यादा या कम यात्री हैं, तो ट्रेन के दुर्घटनाग्रस्त होने की संभावनाएं हैं।

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