मेरे राम: ASI सर्वे में खुलासा, हाई कोर्ट से आधी खुशी, सुप्रीम कोर्ट का आदेश… राम मंदिर वहीं बनेगा

अयोध्या राम मंदिर का 6 दिसंबर 1992 के बाद पूरी तरह से बदल गया। अब विवादित स्थल पर ढांचा नहीं था। वह मस्जिद, जिसे 1950 में पहली बार कानूनी तौर पर ढांचा कहा गया था, ढह चुका था। वहां पर टेंट में रामलला आ चुके थे। ऐसे में मुद्दा अब मंदिर- मस्जिद से हटकर विवादित 2.77 एकड़ जमीन पर कब्जा किसका? यह हो गया।

मैंने 16वीं शताब्दी से 21वीं शताब्दी तक राम मंदिर के लिए हिंदुओं की तड़प देखी है। आज जब हिंदु वर्ग का सबसे बड़ा सपना पूरा हो रहा है, मैं साक्षी हूं। अयोध्या में मुगल बादशाह बाबर के सिपहसालार मीरबाकी के अत्याचार को मैंने सहा है। हिंदुओं का पांच शताब्दियों तक अपने आराध्य वर्गों के लिए तड़प को मैं जीती रही हूं। विभिन्न वर्गों में विभाजित हिंदू जनमानस को एकजुट होने में 500 साल लग गए। वर्गों में बंटे हिंदू जब एक रामलला के सामने दीन भाव से खड़े हुए तो भग्वतवत्सल भगवान ने भी उन्हें वापस लौटने का रास्ता दिखाना शुरू कर दिया। राम की जीवनी हमें हमेशा प्रेरित करती रही है। राम हर युग में प्रासंगिक रहे हैं। राम मंदिर पर हो रही राजनीति से घबराने की जरूरत नहीं है। यह तो मैं त्रेतायुग से देखती आ रही हूं। राजनीति तो तब भी रची गई थी, जब भगवान श्रीराम बाल्यकाल को पार कर जवानी में कदम रख चुके थे। राजा दशरथ उनके राज्याभिषेक की तैयारी में जुट गए थे। इस दौरान राजा दशरथ के ही महल में रहने वाली दासी मंथरा ने साजिश रची। माता कैकेई के बुद्धि पर अपनी राजनीति का ऐसा मायाजाल फेरा, प्रभु श्रीराम को सत्ता संभालने की जगह 14 वर्ष तक वनवास के लिए जाना पड़ा। इसलिए, प्रभु राम के कार्य में राजनीति न हो, यह संभव नहीं है। हालांकि, तमाम राजनिति के पार प्रभु श्रीराम रामराज्य की स्थापना करते हमेशा दिखाई देते हैं।

के पहले प्रयास हुए थे, जो विफल रहा।

वर्ष 1989- 90 में तत्कालीन पीएम वीपी सिंह कार्यकाल में प्रयास किया गया। जॉर्ज फर्नांडीज के नेतृत्व में तीन सदस्यीय कमिटी गठित की गई, लेकिन बात आगे नहीं बढ़ी। वर्ष 1990 में तत्कालीन पीएम चंद्रशेखर ने केंद्रीय मंत्री सुबोध कांत सहाय की अगुआई में यूपी सीएम मुलायम सिंह यादव, महाराष्ट्र सीएम शरद पवार और राजस्थान सीएम भैरों सिंह शेखावत की कमिटी बनाई। विश्व हिंदू परिषद और ऑल इंडिया बाबरी एक्शन कमिटी के साथ बैठक में कोई ठोस नतीजा नहीं निकल सका। 1992 में तत्कालीन पीएम नरसिंह राव ने उस समय के गृह राज्य मंत्री पीआर कुमारमंगलम के नेतृत्व में कुछ मंत्रियों की कमिटी बनाई। कमिटी की बैठक भी हुई, लेकिन यह पूरी तरह से भंग हो गई। राम जन्मभूमि विवाद को हल करने के लिए पूर्व राष्ट्रपति वेंकटरमन ने 2002 में बातचीत का प्रयास किया। उनके प्रयासों के कारण उस समय ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के अध्यक्ष और जगतगुरु शंकराचार्य के बीच मीटिंग हुई। लेकिन, इसका भी कोई परिणाम नहीं निकला।

2003 में भी कांची कामकोटि के जगतगुरु ने ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के अध्यक्ष से बातचीत की कोशिश की। अक्टूबर 2010 में अयोध्या विवाद के सबसे पुराने पक्षकार हाशिम अंसारी ने इस मुद्दे का आउट ऑफ कोर्ट सेटलमेंट करने की हिमायत की। महंत ज्ञान दास से मुलाकात के बाद ऐसी बात कही थी। मई 2016 में भी हाशिम अंसारी ने महंत नरेंद्र गिरी से मीटिंग की थी। दोनों पक्ष शांतिपूर्ण वार्ता से मुद्दे के समाधान की बात कही, लेकिन, किसी भी वार्ता का परिणाम नहीं निकला। मार्च 2017 के आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने मध्यस्थता का भी प्रस्ताव दिया। दोनों तरफ से कई बैठकें हुई। इसके बाद मुस्लिम पक्ष श्रीश्री रविशंकर पर विवादित परिसर से दावा छोड़ने का दबाव बनाने का आरोप लगाने लगा। एक बार फिर मुद्दा पीछे छूट गया।

संविधान पीठ को मामला भेजने पर बहस

आउट ऑफ कोर्ट सेटलमेंट प्रक्रिया फेल होने के बाद एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट में मामले की सुनवाई शुरू हुई। इसके बाद 27 सितंबर 2018 को केस संविधान पीठ को भेजने पर बहस के बाद फैसला आया। मामले की सुनवाई तीन जजों की ही पीठ में कराए जाने की बात कही। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा 2 अक्टूबर 2018 को रिटायर हो गए। 8 जनवरी 2019 को चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने मुख्य न्यायाधीश के रूप में अपनी प्रशासनिक शक्तियों का उपयोग करते हुए, विवाद को पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ को सौंप दिया। 8 मार्च 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों को आठ सप्ताह में मध्यस्थता का प्रयास करने का आदेश दिया। मध्यस्थता की कार्यवाही 13 मार्च को शुरू हुई और मई तक पूरा किया जाना था। कई पक्षों के अनुरोध पर अदालत ने 10 मई को मध्यस्थता अवधि 15 अगस्त तक बढ़ा दी गई। राम जन्मभूमि पक्षकार गोपाल सिंह विशारद ने 9 जुलाई को कोर्ट से हर रोज सुनवाई की मांग की। कोर्ट में उन्होंने मध्यस्थता के सुस्त होने की रिपोर्ट दी।

6 अगस्त से शुरू हुई सुनवाई, फिर ऐतिहासिक फैसला

सुप्रीम कोर्ट की मध्यस्थता की आखिरी कोशिश विफल होने के बाद 6 अगस्त से श्रीराम जन्मभूमि- बाबरी मस्जिद जमीन विवाद पर ऐतिहासिक सुनवाई शुरू हुई। यह सुनवाई 40 दिनों तक चली। इसमें कोर्ट ने बाबरी मस्जिद कमिटी, निर्मोही अखाड़ा, रामलला विराजमान समेत अन्य पक्षों को सुना। चीफ जस्टिस ने 18 अक्टूबर तक बहस पूरी करने का अनुरोध सभी पक्षों से किया। 16 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई की प्रक्रिया पूरी कर ली गई। सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के ऐतिहासिक बेंच में चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस अब्दुल नजीर, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस शरद अरविंद बोबड़े शामिल थे। सुप्रीम कोर्ट ने पांच शताब्दियों से चले आ रहे विवाद पर 9 नवंबर 2019 को बड़ा फैसला दिया।

सुप्रीम कोर्ट ने सर्वसम्मति से देवता श्रीरामलला विराजमान को टाइटल प्रदान किया। विवादित 2.77 एकड़ जमीन रामलला विराजमान को दिए जाने का आदेश दिया गया। इसके अलावा मुस्लिम पक्ष सुन्नी वक्फ बोर्ड को 5 एकड़ जमीन अयोध्या में किसी स्थान पर देने का आदेश दिया गया। जनवरी 1993 में अधिग्रहित भूमि भी रामलला को मंदिर निर्माण के लिए दी गई। केंद्र सरकार को ट्रस्ट बनाकर मंदिर का संचालन करने और राम मंदिर का निर्माण कराने का आदेश दिया गया। इस फैसले ने उस नारे को सही साबित कर दिया, मंदिर वहीं बनाएंगे। इस फैसले के बाद मंदिर का उसी राम जन्मभूमि पर निर्माण का मार्ग प्रशस्त हुआ।

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