तीन साल से ज्यादा नहीं चलेगा कोई मुकदमा, खत्म होगा देशद्रोह कानून, अंग्रेजों के जमाने से इतने अलग हैं नए कानून

लोकसभा में बुधवार को भारतीय न्याय संहिता बिल 2023, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 और भारतीय साक्ष्य विधेयक-2023 पर बहस हुई. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने सदन में कहा कि ये तीनों कानून गुलामी की मानसिकता से मुक्ति दिलाने वाले हैं. इन कानूनों के पारित होने से पूरे देश में एक ही प्रकार की न्याय प्रणाली होगी. इनमें IPC की जगह भारतीय न्याय संहिता बिल, सीआरपीसी की जगह भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 और एविडेंस एक्ट की जगह भारतीय साक्ष्य विधेयक-2023 लेगा.

यह नए कानून लागू होने से देश में कई अहम बदलाव होंगे. खासकर भारतीय न्यायिक संहिता विधेयक- 2023 को लाने से कानून व्यवस्था बेहतर होगी और इसकी प्रक्रिया भी सरल होगी. लोकसभा में बिल पेश करने के दौरान केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी कहा कि अहम बिलों पर विचार का मकसद आपराधिक कानूनों में सुधार करना है. इन विधेयकों को शुरुआत में गृह मंत्री अमित शाह ने मानसून सत्र में पेश किया था और इन्हें संसदीय स्थायी समिति के पास भेजा गया था.

कानूनों में क्या होंगे बदलाव?

आईपीसी में फिलहाल 511 धाराएं हैं. इसके स्थान पर भारतीय न्यायिक संहिता लागू होने के बाद इसमें 356 धाराएं रह जाएंगी. यानी 175 धाराएं बदल जाएंगी. 8 नई धाराएं जोड़ी जाएंगी, 22 धाराएं हटाई जाएंगी. इसी तरह सीआरपीसी में 533 धाराएं रह जाएंगी. 160 धाराएं बदलेंगी, 9 नई जुड़ेंगी, 9 खत्म होंगी. सुनवाई तक पूछताछ वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए करने का प्रावधान होगा, जो पहले नहीं था.

3 साल के भीतर देना होगा फैसला

सबसे बड़ा बदलाव ये है कि अब ट्रायल कोर्ट को हर फैसला अधिकतम 3 साल के भीतर देना होगा. देश में 5 करोड़ मामले लंबित हैं. इनमें से 4.44 करोड़ मामले ट्रायल कोर्ट में हैं. इसी तरह जिला अदालतों में जजों के 25,042 पदों में से 5,850 पद खाली हैं. तीनों बिलों को जांच के लिए संसदीय समिति के पास भेज दिया गया है. इसके बाद इन्हें लोकसभा और बाद में राज्यसभा में पारित कराया जाएगा.

1. मॉब लिंचिंग और नफरती अपराधों के लिए सजा बढ़ी

बिल के पुराने संस्करण में मॉब लिंचिंग और नफरती अपराध के लिए न्यूनतम सात साल की सजा का प्रावधान था. इसमें कहा गया है कि जब पांच या अधिक लोगों के एक समूह द्वारा सामूहिक रूप से जाति या समुदाय आदि के आधार पर हत्या करने के मामले में, हमलावर समूह के हर सदस्य को कम से कम सात साल की कैद की सजा दी जाएगी. अब इस अवधि को सात साल से बढ़ाकर आजीवन कारावास कर दिया गया है.

2. आतंकवादी गतिविधि की परिभाषा

आतंकवादी गतिविधियों को पहली बार भारतीय न्याय संहिता के तहत पेश किया गया था. पहले, इनके लिए विशिष्ट कानून थे. इसमें एक बड़ा बदलाव यह है कि आर्थिक सुरक्षा को खतरा भी आतंकवादी गतिविधि के अंतर्गत आएगा. तस्करी या नकली नोटों का उत्पादन करके वित्तीय स्थिरता को नुकसान पहुंचाना भी आतंकवादी अधिनियम के तहत आएगा. इसमें यह भी कहा गया है कि विदेश में संपत्ति को नष्ट करना, जो भारत में रक्षा या किसी सरकारी उद्देश्य के लिए थी, यह भी एक आतंकवादी गतिविधि होगी. अब भारत में सरकारों को कुछ भी करने पर मजबूर करने के लिए किसी व्यक्ति को हिरासत में लेना या अपहरण करना भी एक आतंकवादी गतिविधि होगी.

3. ये भी बदलाव

मानसिक बीमार लोगों के अपराध की सजा मौजूदा आईपीसी मानसिक रूप से बीमार लोगों को अपराध के लिए सज़ा से छूट देती है. भारतीय न्याय संहिता के पुराने संस्करण में इसे “मानसिक बीमारी” शब्द से बदल दिया गया था. अब ‘विक्षिप्त दिमाग’ शब्द को वापस लाया गया है.

4. अदालती कार्यवाही प्रकाशित करने पर सजा

बिल के नए संस्करण में एक नया प्रावधान कहता है कि जो कोई भी रेप के मामलों में अदालती कार्यवाही के संबंध में अदालत की अनुमति के बिना कुछ भी प्रकाशित करेगा, उसे 2 साल तक की जेल हो सकती है और जुर्माना लगाया जा सकता है.

5. छोटे संगठित अपराध की परिभाषा

पहले के विधेयक में संगठित आपराधिक समूहों द्वारा किए गए वाहनों की चोरी, जेबतराशी जैसे छोटे संगठित अपराध के लिए दंड का प्रावधान किया गया था, अगर इससे नागरिकों में सामान्य तौर पर असुरक्षा की भावना पैदा होती हो. अब असुरक्षा की भावना की यह अनिवार्यता समाप्त कर दी गई है.

6. सामुदायिक सेवा की परिभाषा

नई ‘भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता’ सामुदायिक सेवा को परिभाषित करती है. इसमें कहा गया है कि सामुदायिक सेवा एक ऐसी सज़ा होगी जो समुदाय के लिए फायदेमंद होगी और इसके लिए अपराधी को कोई पारिश्रमिक नहीं दिया जाएगा. इन विधेयकों में छोटी-मोटी चोरी, नशे में धुत होकर परेशान करना और कई अन्य अपराधों के लिए सजा के रूप में सामुदायिक सेवा की शुरुआत की गई थी. हालांकि पहले के संस्करणों में यह अपरिभाषित था.

ये भी हुए बदलाव

  1. नए बिल से देशद्रोह कानून का खात्मा होगा.
  2. नए बिल के अनुसार, सीआरपीसी में अब 356 धाराएं होंगी, जबकि पहले 511 धाराएं थीं.
  3. 7 साल से ज्यादा सजा होने पर फोरेंसिक टीम का अपराध स्थल पर जाना अनिवार्य होगा और लाइव वीडियोग्राफी होगी.
  4. एफआईआर दर्ज करने से लेकर केस डायरी, चार्ज शीट और फैसला लेने तक की पूरी प्रक्रिया को डिजिटल किया जाएगा.
  5. अपराध कहीं भी हो, लेकिन एफआईआर देश के किसी भी हिस्से में हो सकेगी.
  6. पहचान छिपाकर यौन संबंध बनाने वालों पर भी केस चलेगा और सजा मिलेगी, इससे लवजिहाद पर लगाम लगेगी.

 

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