फ्री की रेवड़ी बांटने के चक्कर में कर्ज के जाल में फंस रहे राज्य, गैर-बीजेपी शासित इन 2 प्रदेशों की हालत खराब

सब्सिडी वाले गैस सिलेंडर से लेकर मुफ्त बस पास, बेरोजगारी भत्ता से लेकर डायरेक्ट कैश लाभ और फ्री बिजली से लेकर मुफ्त पानी तक राजनीतिक दलों ने हाल ही में हुए 5 राज्यों के विधानसभा चुनावों में मतदाताओं को लुभाने के लिए हर चीज का वादा किया. अपने पांच गारंटी के आधार पर कर्नाटक चुनाव में क्रांग्रेस ने सफलता हासिल जरूर कर ली, लेकिन राज्य की खराब वित्तीय स्थिति के कारण उसे पूरा करना उसके लिए मुश्किल हो रहा है. मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को कर्नाटक में अब समझ आ रहा है. किसी भी सरकार के पास एक सीमित संख्या में पैसा होता है, जिसको वह समझदारी से खर्च करती है. दिलचस्प बात यह है कि हमारे देश के राजनेता इस बात की परवाह किए बिना चुनावी घोषणाएं कर देते हैं.

स्टडी हैरान करने वाली है

ईएसी-पीएम (प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार समिति) की सदस्य डॉ. शमिका रवि और भारतीय सांख्यिकी संस्थान (ISI) के डॉ. मुदित कपूर ने ‘भारत में राज्य बजट’ शीर्षक वाली स्टडी में भारत के अलग-अलग राज्यों की वित्तीय स्वास्थ्य जांच की है, जिसमें 1990 से 2020 के ट्रेंड को ऑब्जर्व किया गया है. पिछले तीस साल के टाइम ट्रेंड पर आधारित इस इकोनॉमिक पेपर में अलग-अलग राज्यों के फिजिकल ट्रेजरी के बारे में बताया गया है, जिसमें विभिन्न राज्यों की सरकारों द्वारा की जा रही कमाई, खर्च और कैपिटल आउटले की जानकारी है. 90 के दशक में पंजाब और हरियाणा राज्यों की विकास दर समान थी, लेकिन 2000 के बाद इसमें काफी बदलाव आया. बिहार एक दशक से अधिक समय से नकारात्मक विकास दर वाला भारत का एकमात्र राज्य है. अध्ययन में कहा गया है कि बिहार की वास्तविक प्रति व्यक्ति आय 1990 से 2005 तक अपरिवर्तित रही थी.

डेवलपमेंट और नॉन डेवलपमेंट खर्च का ट्रेंड

राज्य में हुए विकास और गैर विकास यानी डेवलपमेंट और नॉन डेवलपमेंट पर किए गए खर्च को लेकर दी गई जानकारी में यह स्टडी कहती है कि विकास कार्यों पर होने वाले खर्च का हिस्सा 1990 में लगभग 70 प्रतिशत से घटकर 2020 में लगभग 60 प्रतिशत हो गया है. दिलचस्प बात यह है कि जहां सभी बड़े राज्यों के लिए विकास कार्यों पर किया जाने वाला खर्च का हिस्सा 50 प्रतिशत से अधिक है, वहीं केवल दो गैर-भाजपा शासित राज्य पंजाब और केरल में 50 फीसदी से भी कम है. डॉ. रवि के अनुसार, यह उनके भविष्य की वृद्धि और विकास के लिए अच्छा संकेत नहीं है. बता दें कि डेवलपमेंट खर्च बुनियादी ढांचे के निर्माण से संबंधित स्वास्थ्य, शिक्षा, परिवहन और आर्थिक सेवाओं पर किया गया खर्च होता है. दूसरी ओर नॉन डेवलपमेंट खर्च प्रशासनिक वेतन, ब्याज भुगतान लोन सर्विस, पेंशन आदि पर किया गया खर्च होता है. कोई भी राज्य जो विकास पर अधिक खर्च करता है, उसे अच्छे वित्तीय स्वास्थ्य में माना जाता है.

तेजी से बदल रहा ट्रेंड

जब बात नॉन डेवलपमेंट खर्च से जुड़े उस हिस्से पर होती है, जिसमें राज्य को कर्ज चुकाने के लिए ब्याज भुगतान करना पड़ता है तो उसके आंकड़े बढ़ते हुए दिखाई देते हैं. सरकार के कुल खर्च पर कर्ज चुकाने का बोझ 1990-91 में 20 प्रतिशत से बढ़कर 2004-05 में 40 प्रतिशत से अधिक हो गया था और 2020-21 में यह वापस से घटकर लगभग 20% रह गया. गुजरात में यह 2000-01 में 20 प्रतिशत से बढ़कर 2005-06 में 50 प्रतिशत से अधिक हो गया, फिर 2020-21 में इसमें तेजी से गिरावट आई और यह लगभग 20 प्रतिशत रह गई. दिल्ली के संबंध में यह ट्रेंड बदलता हुआ देखा गया. 2020-21 में कर्ज पर होने वाला खर्च घटकर 10 प्रतिशत से भी कम हो गया.

इन दो राज्यों की हालत खराब

हालांकि, केरल और पंजाब में उलटफेर होता दिख रहा है, जहां पिछले दशक में ब्याज भुगतान की हिस्सेदारी बढ़ी है. केरल के मामले में यह 25 प्रतिशत से बढ़कर 30 प्रतिशत हो गया है. पंजाब में यह 30 फीसदी से बढ़कर 40 फीसदी से ज्यादा हो गया है. इसकी वजह से राज्य पर कर्ज का ब्याज चुकाने के लिए अधिक बोझ पड़ रहा है. इससे विकास कार्यों के लिए किए जाने वाले खर्च में कमी आ रही है. यह हाल भारत के लगभग सभी राज्यों का है.

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