वो खूनी जंग जिसने हिटलर को सबक सिखाया… 10 लाख से अधिक मौते हुईं, टूट गई थी नाजी सेना

पूरी दुनिया का इतिहास तमाम युद्धों से भरा पड़ा है पर इनमें से कुछ युद्ध ऐसे हैं जो आज भी लोगों में सिहरन पैदा कर देते हैं. ऐसे ही एक युद्ध लड़ा गया था दूसरे विश्व युद्ध के दौरान. लड़ाई का मैदान बना था तत्कालीन सोवियत संघ और आज के रूस का शहर स्टालिनग्राड. इसीलिए उसे बैटल ऑफ स्टालिनग्राड यानी स्टालिनग्राड की लड़ाई भी कहा जाता है.

हालांकि, 2 फरवरी 1943 को जब लड़ाई खत्म होने की घोषणा हुई, तब तक कम से कम 10 लाख सैनिक मारे जा चुके थे. यह आंकड़ा कुछ जानकार 10 से 20 लाख मौतों तक बताते हैं.

इसलिए हिटलर ने किया था स्टालिनग्राड पर हमला

उस जमाने में स्टालिनग्राड सोवियत संघ के लिए एक अहम शहर था. मॉस्को से करीब 900 किलोमीटर दूर इसी शहर में सोवियत संघ के कई उद्योग स्थापित थे और छह लाख लोग केवल मिलिट्री से जुड़े उत्पाद तैयार करते थे. इसके साथ ही यह शहर ऑयल फील्ड्स के लिए गेटवे के रूप में भी काम करता था. फिर इस शहर का नाम सोवियत संघ के तत्कालीन शासक स्टालिन के नाम पर था, इसलिए उन्हें नीचा दिखाने के लिए जर्मनी के तानाशाह हिटलर ने इस पर हमला कर जीतने की कोशिश की थी पर उसे मुंह की खानी पड़ी.

हिटलर ने दिया स्टालिन को धोखा

दरअसल, दूसरा विश्व युद्ध जब शुरू हुआ था तो सोवियत संघ के शासक स्टालिन ने जर्मनी के तानाशाह हिटलर के साथ एक गुपचुप समझौता किया था. इसके जरिए इन दोनों ने पूर्वी यूरोप के देशों को आपस में बांट लिया था. इसी दौरान जर्मनी की नाजी सेना ने चुटकियों में फ्रांस पर कब्ज़ा कर लिया था. खुद ब्रिटेन को पीछे हटना पड़ा था. हालांकि, रूसी सेना के जनरलों को हिटलर के मंसूबों का अहसास था और उन्होंने स्टालिन को आगाह भी किया था. उनका कहना था कि जर्मनी कभी भी सोवियत संघ पर हमला कर सकता है, लेकिन स्टालिन ने उनकी बात नहीं सुनी.

सोवियत संघ के शासक ने खुद को कमरे में बंद किया

फिर जून 1941 में वही हुआ, जिसका अंदेशा रूसी जनरलों ने जताया था. पहले तो जर्मनी ने पोलैंड पर कब्जा किया और फिर सोवियत संघ पर भी जबरदस्त हमला कर दिया. अचानक हुए इस हमले से सोवियत संघ की सेनाओं को भीषण नुकसान उठाना पड़ा, क्योंकि वे मुकाबले के लिए तैयार ही नहीं थीं. वहीं, तानाशाह हिटलर के धोखे के चलते स्टालिन इतना गुस्सा थे कि किसी तरह का कोई फैसला ही नहीं ले पा रहे थे. बताया जाता है कि स्टालिन ने ऐसे हालात में खुद को एक कमरे में कैद कर लिया था. ऐसे में सोवियत संघ को कोई दिशा दिखाने वाला ही नहीं बचा और हिटलर के सैनिक दनदनाते हुए मॉस्को तक पहुंच गए थे.

मॉस्को छोड़ने की दी गई सलाह

बात दिसंबर 1941 की है. जब जर्मनी की सेनाएं मॉस्को के नजदीक आ चुकी थीं तो स्टालिन के सलाहकारों ने उन्हें राजधानी छोड़ने की सलाह दी. हालांकि, स्टालिन के मन में तो कुछ और ही चल रहा था. वह देश के लाखों लोगों को युद्ध की आग में झोंकने के लिए तैयार बैठे थे, क्योंकि हिटलर के धोखे से तिलमिलाए हुए थे. वही हुआ भी. स्टालिन ने मॉस्को छोड़ने के बजाय अपने कमांडरों को आदेश दे दिया कि उन्हें नाजी सेनाओं को हर हाल में शिकस्त देनी होगी.

दो सौ दिन-रात चली लड़ाई

फिर क्या था, अभी तक हिटलर की जो सेना धड़धड़ाते हुए आगे बढ़ रही थी, उसके खिलाफ स्टालिनग्राड में रूसी सेनाओं ने बड़ा मोर्चा खोल दिया. एक ओर हिटलर स्टालिनग्राड को जीतकर स्टालिन को नीचा दिखाना चाहता था तो स्टालिन ने भी कह दिया था कि उनकी सेना के जवान एक कदम भी पीछे नहीं हटेंगे. स्टालिनग्राड की लड़ाई जुलाई 1942 में शुरू हुई और दो सौ दिनों तक चलती रही.

इस दौरान हवाई जहाजों से बम बरसाए जा रहे थे तो जर्मनी और सोवियत संघ के जवान आमने-सामने लड़ रहे थे. सोवियत संघ के आम लोग भी इसमें अपनी सेना का साथ दे रहे थे. स्टालिन की चेतावनी भी थी कि जो भी सैनिक पीछे हटा उसे गोली मार दी जाएगी.

कम तापमान वाले रूस में जर्मन सैनिकों का बुरा हाल

वैसे तो जर्मन सेना के जनरल फ्रीडरिक पॉलस ने इस शहर के लगभग 90 फीसदी हिस्से पर कब्जा कर लिया था पर नवंबर में सोवियत संघ की सेनाओं ने कड़ा प्रहार किया. इससे जीरो से भी 30 डिग्री कम तापमान वाले क्षेत्र में महीनों से लड़ रहे जर्मनी के सैनिकों की हालत खराब हो गई.

भूख के मारे वैसे ही उनकी जान निकल रही थी. फिर भी लड़ाई जारी थी. जनवरी 1943 में सोवियत संघ ने फाइनल अटैक किया और अपने शहर के इंच-इंच पर कब्जा कर लिया. दो फरवरी 1943 को आखिरकार हिटलर की सेना को सरेंडर करना पड़ा. केवल दो दिनों के भीतर 45 हजार जर्मन सैनिकों को बंदी बना लिया गया था, जबकि 45 हजार से ज्यादा सैनिक पहले से ही बंदी थे.

बताया जाता है कि स्टालिनग्राड की लड़ाई में केवल रूसी सेना के दस लाख से ज़्यादा सैनिक मारे गए थे. फिर भी सोवियत संघ ने हिटलर की सेनाओं को जर्मनी की तरफ खदेड़ दिया था. यहां तक कि सोवियत सेनाएं उन्हें खदेड़ते हुए हिटलर की राजधानी बर्लिन तक जा पहुंची थीं.

हिटलर की हार का बड़ा कारण स्टालिनग्राड की लड़ाई

आज भी यह युद्ध रूस में देशभक्ति की मिसाल है, जब एक तानाशाह स्टालिन की अगुवाई में सोवियत संघ के लड़ाकों ने दूसरे तानाशाह हिटलर की सेना के छक्के छुड़ा दिए थे. इसी लड़ाई में पहली बार नाजी सेना ने दूसरे विश्व युद्ध के दौरान सरेंडर किया था. इसके साथ ही यूरोप से हिटलर की नाजी सेना का कब्जा हटा और वह कमजोर होती चली गई.

अंत में दूसरे विश्व युद्ध में हिटलर की हार का बड़ा कारण भी यही लड़ाई बनी. वहीं, रूस को कई क्षेत्रों पर कब्जे का मौका मिल गया. इनमें बर्लिन का पूर्वी हिस्सा और पूर्वी यूरोप का एक बड़ा हिस्सा भी था. इसके बाद ही स्टालिन ने कहा था कि अब ये सभी देश सोवियत संघ के अंगूठे के नीचे रहेंगे.

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