तबाही की आहट! 84 सालों में इतना पिघल चुका अंटार्कटिका का ग्लेशियर, डूब जाएगी दुनिया?

ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण तबाही का खतरा मुंह खोले खड़ा है, जिसके बारे में वैज्ञानिक पिछले काफी अरसे से चेताते आ रहे हैं। ग्लोबल वार्मिंग का एक बड़ा प्रभाव ग्लेशियरों की बर्फ को पिघलाने में भी देखा जा रहा है। अंटार्कटिका महाद्वीप का डूम्सडे ग्लेशियर (Doomsday Glacier) भी लगातार पिघल रहा है। यह कैसे शुरू हुआ, वैज्ञानिकों ने इसे लेकर एक स्टडी की है। स्टडी के मुताबिक Doomsday Glacier, जिसे थ्वेट्स ग्लेशियर (Thwaites Glacier) भी कहा जाता है, 1940 में पिघलना शुरू हुआ था जिसके बाद यह तेजी से पिघलता ही जा रहा है। वैज्ञानिकों को एक बड़े खतरे का अंदेशा है।

Doomsday Glacier को लेकर वैज्ञानिकों की चिंता बढ़ गई है। इसका साइज अमेरिका के फ्लोरिडा स्टेट जितना बड़ा है। अंटार्कटिका के पिघलने से दुनियाभर में समुद्र का जो स्तर बढ़ा रहा है, उसमें इस ग्लेशियर का 5 प्रतिशत योगदान बताया गया है। यह तेजी से पिघल रहा है। Proceedings of the National Academy of Sciences नामक जर्नल में इसे लेकर स्टडी प्रकाशित की गई है। स्टडी कहती है कि यह ग्लेशियर 1940 में तेजी से पिघलना शुरू हो गया था। उस वक्त एक अधिक प्रभावशाली अल-नीनो इवेंट के कारण इसकी बर्फ के पिघलने की रफ्तार में एकदम से तेजी आ गई थी। उसके बाद से ग्लेशियर का पिघलना जारी है, और जो बर्फ पिघल चुकी है उसकी भरपाई नहीं हो पा रही है।

रिपोर्ट कहती है कि मानव गतिविधियों के कारण जो ग्लोबल वार्मिंग पैदा हुई है, उसी के चलते अब इसकी भरपाई होना मुश्किल हो रहा है। इसे डूम्सडे ग्लेशियर इसलिए कहा जाता है क्योंकि इसके एकदम से ध्वस्त होने का खतरा बहुत ज्यादा है। डर इस बात का है कि अगर यह एकदम से ध्वस्त हो गया तो जल स्तर 2 फीट तक बढ़ जाएगा और दुनियाभर में विनाशकारी बाढ़ का खतरा पैदा हो जाएगा।

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