‘कोहिनूर’ हीरे से कम नहीं ‘नवलखा हार’ की कहानी, क्या सच में है 9 लाख से कोई कनेक्शन?
‘नवलखा हार’, ये ऐसा हार है जिसके किस्से आपने ‘बालिका वधू’ में आनंदी की दादीसा से लेकर ‘अनुपमा’ की बा तक से सुने होंगे, नहीं तो आपके घर में दादी-नानी ने इसकी कहानियां आपको जरूर बताई होंगी. सोचिए आखिर ऐसा क्या होता होगा इस ‘हार’ में जो ये आज तक लोगों के बीच पॉपुलर है. वहीं इसका डिजाइन वापस से शादियों के सीजन में ट्रेंड कर रहा है. इसका 9 लाख रुपए से क्या कनेक्शन है? चलिए बताते हैं सब कुछ…
अगर आपने ‘बाजीराव मस्तानी’ फिल्म देखी है, तो उसमें रणवीर सिंह के कैरेक्टर को एक हरे रंग का भारी सा नेकलेस पहने देखा होगा. बस समझ लीजिए कि आपने ‘नवलखा हार’ देखा है, क्योंकि असली नवलखा हार का कनेक्शन भी मराठाओं से होकर बिहार के दरभंगा तक पहुंचता है. ये कहानी ‘कोहिनूर’ हीरे के ट्रैवल की कहानी जैसी ही है.
बाजीराव से दरभंगा तक की कहानी
बताया जाता है कि नवलखा हार पेशवा बाजीराव के पास होता था, जो उन्होंने 9 लाख मुद्राओं (उस समय रुपया नहीं चलता था) में खरीदा था. ये पेशवाओं और मराठाओं के पास काफी समय तक रहा. फिर 1857 के बाद नाना साहब पेशवा ने इसे नेपाल के राणा जंग बहादुर को बेच दिया और 1901 में ये नेपाल से दरभंगा के महाराजा रामेश्वर सिंह के पास पहुंचा. महाराजा रामेश्वर सिंह उस समय देश के तीसरे सबसे अमीर इंसान हुआ करते थे. उनसे आगे हैदराबाद के निजाम और वडोदरा के गायकवाड़ हुआ करते थे.
वैसे ‘नवलखा हार’ का एक किस्सा वडोदरा के गायकवाड़ राजघराने से भी जुड़ा है. रिपोर्ट्स के मुताबिक वडोदरा राजघराने के श्रीमंत मनाजीराव गायकवाड़ की तबियत एक बार बहुत खराब हुई. परिवार ने गुजरात के मेहसाणा में बहुचरा देवी के मंदिर पर मन्नत मांगी और जब मनाजीराव स्वस्थ हो गए, तो हीरे-मोती से जड़ा एक बेशकीमती हार उन्होंने देवी मां को अर्पित किया. ये हार आज भी मंदिर में है और हर साल विजयदशमी के दिन देवी श्रृंगार का हिस्सा होता है.
क्यों खास होता है ‘नवलखा हार’ का डिजाइन?
अगर बात करें तो आज की तारीख में ‘नवलखा हार’ का रियल कनेक्शन 9 लाख रुपए से ना होकर, ‘नवलखा’ टाइप के डिजाइन से हो गया है, क्योंकि असली ‘नवलखा हार’ आज की तारीख में करीब 250 से 300 करोड़ रुपए का बैठेगा. लेकिन ‘नवलखा’ डिजाइन को खास बनाता है इसका ‘जड़ाऊ ज्वैलरी’ होना.
‘नवलखा हार’ में हीरे, नीलम, पन्ना और अन्य कई कीमती पत्थरों के साथ मीनाकारी का अच्छा काम होता है. कहा तो ये भी जाता है कि इसका नाम ‘नवलखा’ पड़ने की एक वजह इसमें 9 तरह के रत्नों का इस्तेमाल होना है. अब इसके कारीगर भी आपको सिर्फ राजस्थान और बंगाल में ही मुख्य तौर पर मिलेंगे. वहीं ‘मराठी’ वेशभूषा में इसे खास तवज्जो दी जाती है.
‘जड़ाऊ ज्वैलरी’ इस साल एक बार फिर शादियों के ट्रेंड में है. ‘दुल्हनों’ की इस फरमाइश की वजह से एक तरफ माता-पिता का बजट बढ़ गया है, वहीं इन ज्वैलरी की डिमांड 15 प्रतिशत तक बढ़ी है.