मांग में सिंदूर न भरना मानसिक क्रूरता… पीड़ित पति के पक्ष में फैसला सुनाते हुए कोर्ट ने कहा
हिंदू धर्म में सुहागिनें मांग में सिंदूर लगाती हैं. कहते हैं कि इससे खुशहाल दांपत्य जीवन का आशीर्वाद मिलता है. मांग में सिंदूर से जुड़े एक मामले में मध्य प्रदेश के इंदौर में फैमिली कोर्ट का फैसला आया है. इसमें जज ने पीड़ित पति के पक्ष में फैसला देते हुए पत्नी द्वारा मांग में सिंदूर न भरने को क्रूरता माना है.
न्यायाधीश एनपी सिंह ने पीड़ित पति के पक्ष में फैसला सुनाते हुए कहा कि सिंदूर एक विवाहित पत्नी का धार्मिक दायित्व है. इससे मालूम पड़ता है कि महिला विवाहित है. पीड़ित पति की ओर से फैमिली कोर्ट के समक्ष अधिवक्ता शुभम शर्मा ने पक्ष रखा. जहां न्यायालय के द्वारा वितरित 11 पन्नो के अपने आदेश में गुवाहाटी उच्च न्यायालय के का आदेश अभिमत देते हुए पत्नी का सिंदूर नहीं लगाना एक प्रकार से क्रूरता भी माना, पत्नी के संपूर्ण बयान से स्पष्ट होता है कि पीढ़ी पति ने पत्नी का परित्याग नहीं किया है बल्कि पत्नी ने अपनी मर्जी से अपने आप को पति से अलग किया था.
पीड़ित पति के अधिवक्ता शुभम शर्मा ने बताया कि इंदौर के रहने वाले युवक से 2017 में युवती ने विवाह किया था. विवाह के कुछ साल ठीक-ठाक रहा लेकिन बाद में दोनों में अनबन होती चली गई. साल 2021 में मामला फैमिली कोर्ट पहुंचा, जिस पर शनिवार को न्यायालय ने फैसला सुनाते हुए पत्नी को पति के साथ गृहस्थ जीवन बिताने का आदेश दिया.
दरअसल, न्यायालय के समक्ष पीड़ित पति द्वारा हिंदू विवाह अधिनियम की धारा-9 के तहत दांपत्य संबंधों की पुनर्स्थापना के लिए मामला पेश किया गया था. पीड़ित पति का पत्नी द्वारा 5 साल से बेवजह परित्याग किया गया था. पत्नी द्वारा पति पर शराब, गांजा पीने, सट्टा खेलने, मारपीट करने और दहेज की मांग के साथ ही गृहस्थी के दौरान घर खर्च नहीं देने सहित कई गंभीर आरोप लगाए थे.
पत्नी को तत्काल प्रभाव से पति के पास लौटने का आदेश
इन आरोप का कोर्ट के समक्ष अधिवक्ता ने खंडन किया और न्यायालय को हकीकत बताई. इस पर कोर्ट ने पीड़ित पति के पक्ष में फैसला सुनाते हुए पत्नी को तत्काल प्रभाव से पति के पास लौटने और साथ रहने का आदेश दिया है.