सर्दी बढ़ी तो इस गांव ने बना डाला अपना सूरज, ढाई महीने नहीं दिखती थी धूप, अब जाती ही नहीं

धरती पर रहने वाले हर प्राणी के लिए सूरज बेहद जरूरी है. वहीं, अगर कड़ाके की ठंड पड़ रही हो तो हर व्‍यक्ति धूप में बैठना चाहता है. हालांकि, पिछले कुछ दिनों से देश के कुछ हिस्‍सों में हाड़कंपाने वाली ठंड तो पड़ ही रही है, साथ ही सूरज के दर्शन भी दुर्लभ हो गए हैं. इस दौरान उत्‍तर भारत में कोहरे और धुंध की घनी चादर छाई रही. लोग ठिठुरन से बवने के लिए या तो रजाई में छुपे रहे या हीटर, अंगीठी और ब्‍लोअर का इस्‍तेमाल करते हुए दिखाई दिए. लेकिन, एक गांव ने इसका ऐसा उपाय निकाला, जिसके बारे में किसी भी आम आदमी के लिए सोचना भी मुयिकल है. इस गांव के लोगों ने अपना आर्टिफिशियल सूरज ही बना डाला. यहां हम चीन की बात नहीं कर रहे हैं.

दरअसल, इटली के इस गांव में सूरज तो उगता था, लेकिन लोकेशन कुछ ऐसी थी कि गांव के किसी भी हिस्‍से तक धूप नहीं पहुंचती थी. धूप ना पहुंचना इस गांव के लिए बड़ी समस्या बन गया था. इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए गांव वालों ने धरती पर ही सूरज को उतार लिया. दरअसल, उन्होंने धूप की ऐसी व्यवस्था की है, जिसे देखकर हर कोई कहता है कि उन्होंने अपने लिए अलग से सूरज बना लिया है. ये विगनेला गांव स्विट्जरलैंड और इटली के बीच मौजूद है. यहां 11 नवंबर से 2 फरवरी के बीच सूरज की रोशनी बहुत धीमी हो जाती है.

विगनेला के मेयर ने जुटाई रकम, शुरू हुआ बड़ा काम

विगनेला गांव पहाड़ों के बीच बसा है. इसीलिए ढाई महीने यहां सूरज की सीधी रोशनी नहीं पहुंच पाती थी. हालात इतने खराब थे कि यहां 11 नवंबर को सूरज गायब हो जाता था. फिर 2 फरवरी को ही गांव वालों को दोबारा सूरज देखने को मिलता था. स्‍थानीय लोगों को साइबेरिया जैसा अनुभव होता था. इस गांव में 200 लोग रहते हैं. सदियों से सूरज के गायब होने और फिर ढाई महीने बाद ही दिखने का ये सिलसिला बदस्‍तूर जारी था. साल 2005 में विगनेला के मेयर पियरफ्रैंको मिडाली की मदद से करीब 1 करोड़ रुपये जुटाए गए. फिर गांव के सामने के पहाड़ पर बहुत बड़े शीशे को लगाने का काम शुरू किया गया.

विगनेला गांव को रोशनी कैसे देता है विशालकाय मिरर

गांव वालों ने नवंबर 2006 तक 40 वर्ग मीटर का एक शीशा पहाड़ के ऊपर लगा लिया. इसका वजन 1.1 टन था. इसे 1100 मीटर की ऊंचाई पर लगाया गया था. शीशे पर धूप की रोशनी पड़ी, जिसे गांव की ओर रिफ्लेक्ट किया गया. शीशे का आकार बड़ा होने के कारण दिसंबर 2006 में पहली बार पूरे गांव को रोशनी मिली. शीशे का एंगल ऐसा सेट किया गया कि रोशनी से गांव के चर्च के सामने मौजूद चौक पर धूप रहे. ये कंप्‍यूटराइज्‍ड शीशा पूरे दिन सूरज की चाल को फॉलो करता है और घूमता जाता है. ऐसे में ये शीशा करीब 6 घंटे गांव के एक हिस्से को रोशन करता है. शीशा लगने के बाद लोगों के स्वभाव में बड़ा परिवर्तन देखने को मिला है.

चीन का आर्टिफिशियल सूरज 1 लाख करोड़ रुपये का

चीन भी अपना आर्टिफिशियल सूरज तैयार कर चुका है. इसे बनाने में चीन ने 1 लाख करोड़ रुपये खर्च किए हैं. वहीं, इटली के विगनेला गांव के लोगों ने महज एक करोड़ रुपये खर्च कर अपने लिए रोशनी का इंतजाम कर लिया. पहले इस गांव में नवंबर से फरवरी के बीच सर्दी और अंधेरे के कारण सन्‍नाटा पसरा रहता था. वहां के लोगों ने जिस तरह से इस समस्‍या का समाधाना खोजा है, वो पूरी दुनिया के लिए मिसाल बन गया है. बता दें कि विगनेला में 13वीं शताब्दी में लोगों ने बसना शुरू किया था. पहले जब 2 फरवरी को सूरज के दर्शन होते थे तो लोग जश्‍न मनाते थे.

कब, किसे और कैसे आया विशालकाय मिरर का विचा

सर्दी, अंधेरा और सन्‍नाटे से छुटकारा पाने का विचार सबसे पहले 1999 में आया. दरअसल, तब विगनेला के आर्किटेक्ट जियाकोमो बोंजानी ने चर्च की दीवार पर एक धूपघड़ी लगाने का सुझाव दिया था. ये घड़ी सूर्य की स्थिति से समय बताती है. हालांकि, तब के मेयर पियरफ्रेंको मिडाली ने सुझाव को खारिज कर दिया. इसके बाद उन्‍होंने बोंजानी से कुछ ऐसा बनाने को कहा, जिससे गांव में पूरे साल धूप रहे. इी के बाद बोंजानी ने गांव के ऊपर की चोटभ्‍ पर बड़े आकार का शीशा लगाने की योजना पर काम करना शुरू कर दिया था. बता दें कि आर्टिफिशियल मिरर से मिलने वाली रोशनी प्राकृतिक धूप के बराबर गर्माहट तो नहीं देती, लेकिन मुख्य चौराहे को गर्म करने और घरों को रोशनी देने के लिए काफी है. इसके बाद 2013 में दक्षिण-मध्य नॉर्वे की एक घाटी में मोजूद रजुकन में भी ऐसा ही मिरर लगाया गया.

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