क्या RJD और इंडिया गठबंधन से अलग होंगे नीतीश? इन फैसलों से उठे सवाल

नीतीश ने जेडीयू की कमान अपने हाथों में ले ली है. ललन सिंह के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से हटने से आरजेडी अलर्ट हो गई है. ज़ाहिर है खतरे की घंटी अब इंडिया गठबंधन को भी सुनाई पड़ने लगी है. राष्ट्रीय परिषद की बैठक में जिन चार प्रस्तावों को पास किया गया है, उसमें एक जातीय जनगणना के मुद्दे पर नीतीश कुमार का बिहार से बाहर जाकर जनजागरण करना है. ये भी तय है कि नीतीश कुमार अब अपनी महत्वाकांक्षाओं को साधने के लिए देश का दौरा करेंगे. इतना ही नहीं जेडीयू बिहार के बाहर यूपी और झारखंड जैसे प्रदेशों में भी अपने उम्मीदवारों को मैदान में उतारेगी. इसलिए इस मुहिम में जो साथ होगा उसे साथी माना जाएगा वर्ना नीतीश कुमार अब कांग्रेस के भरोसे बैठे रहने वाले नहीं हैं.

नीतीश के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने का मतलब क्या है?

नीतीश कांग्रेस और आरजेडी के साथ सीधे डील करेंगे ये तय हो गया है. इसलिए नीतीश कुमार ने ललन सिंह को किनारे कर पार्टी अध्यक्ष पद को अपने हाथों में ले लिया है. दरअसल पिछले चार इंडिया गठबंधन की बैठकों में नीतीश के हाथ खाली रहे हैं. इसलिए नीतीश कुमार अब डिफेंसिव होकर राजनीति करने के मूड में नहीं हैं. ज़ाहिर है सीट शेयरिंग को लेकर भी पार्टी अब अपनी मांगों को पूरे जोर शोर से रखने का मन बना चुकी है. वहीं घटक दल आरजेडी और कांग्रेस के साथ पार्टी अपनी शर्तों पर बात करेगी, इसका खाका भी तैयार कर लिया गया है.

दरअसल ललन सिंह पर आरजेडी की लाइन पकड़कर चलने का आरोप लग रहा था. वहीं पार्टी अपना जनाधार खो रही थी. पांच उपचुनाव के परिणामों में पार्टी की हालत सबके सामने है. ज़ाहिर है लोकसभा चुनाव के टिकट से लेकर गठबंधन तक के फैसले लेने के लिए नीतीश कुमार अब पूरी तरह स्वतंत्र हैं. इसलिए पार्टी अध्यक्ष का पद लेकर नीतीश ने बड़ा इशारा कर दिया है.

वैकल्पिक गठबंधन की ओर क्यों बढ़ रहे नीतीश?

नीतीश कुमार को उम्मीद थी कि उन्हें विपक्षी गठबंधन का नेता बनाया जा सकता है. इसलिए नीतीश एनडीए गठबंधन का साथ छोड़कर इंडिया गठबंधन में आ गए थे. जेडीयू कई दफा उन्हें पीएम पद का सुयोग्य उम्मीदवार करार दे चुकी है. लेकिन इंडिया गठबंधन में उनके नाम को प्रस्तावित करने को लेकर लालू प्रसाद आगे आकर बोलते नहीं देखे गए हैं. ज़ाहिर है लालू प्रसाद लोकसभा चुनाव तक चुप हैं और नीतीश के साथ मिलकर लोकसभा चुनाव में ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतने के फिराक में हैं. ये तय माना जा रहा है कि ऐसे में लोकसभा चुनाव खत्म होने पर आरजेडी नीतीश को सीएम पद छोड़ने को लेकर दबाव बढ़ाएगी. जाहिर है नीतीश कुमार ऐसा अवसर आने से पहले ही बिहार की सत्ता को बचाए रखने की पुरजोर कोशिश में जुट गए हैं. इसलिए आरजेडी के साथ मिलकर सरकार चलाने के सबसे बड़े पक्षधर नेता ललन सिंह को हटाकर नीतीश ने पहला रोड़ा अपने रास्ते से हटा दिया है. इसलिए ये तय माना जा रहा है कि नीतीश को आने वाले दिनों में कांग्रेस की तरफ से कुछ विशेष ऑफर नहीं मिलता है तो नीतीश वैकल्पिक राजनीति के लिए समुचित माहौल बनाकर बड़े फैसले लेने से परहेज नहीं करेंगे.

बीजेपी के साथ क्यों जा सकते हैं नीतीश ?

जानकारी के मुताबिक जेडीयू के 16 सांसदों में 13 सांसद बीजेपी के साथ जाने को लेकर इच्छुक हैं. ज़ाहिर है पिछले तीन दशक से जेडीयू लालू विरोधी वोटों को हासिल कर राजनीति चमकाती रही है. इसलिए लालू प्रसाद के साथ मिलकर चुनाव लड़ने से नीतीश का जनाधार तेजी से सिकुड़ रहा है. लेकिन इस बार बीजेपी जेडीयू को राज्य में सीएम पद देने को तैयार नहीं है. बीजेपी सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक नीतीश को केन्द्र में जगह दी जा सकती है. वहीं उनके नेताओं को उपमुख्यमंत्री का पद देकर बीजेपी जेडीयू के साथ गठबंधन करने को लेकर हामी भर सकती है. जाहिर है कि बीजेपी नीतीश कुमार के एंटी इन्कमबेंसी को हटाने के लिए अपना सीएम देने की पक्षधर है. जबकि नीतीश फिलहाल इस बात के लिए तैयार नहीं हैं. नीतीश हर हाल में लोकसभा चुनाव तक सीएम पद पर बने रहना चाहते हैं.

जाहिर है यही बात अभी बीजेपी और जेडीयू के बीच रोड़ा बनी हुई है. इसलिए नीतीश कुमार ने बीजेपी के साथ टाइअप करने के लिए पहला रोड़ा हटाकर माकूल माहौल बनाने के रास्ते में बड़ा कदम चल दिया है. आरजेडी इस परिस्थिति में थोड़ा भी बदलाव करने को लेकर दबाव बनाती है तो नीतीश नए विकल्प का सहारा ले सकें, ऐसा माहौल तैयार करने की कोशिश में जुट गए हैं. बहरहाल आरजेडी भी नीतीश के अध्यक्ष बनने के बाद हाई अलर्ट पर है. नीतीश कुमार पाला बदल सकते हैं इसका अंदेशा आरजेडी को हो चुका है. आरजेडी के एक बड़े नेता के मुताबिक ललन सिंह का हटना गठबंधन के लिए शुभ संकेत नहीं है. इसलिए आरजेडी भविष्य की राजनीति को लेकर मंथन करने में जुट गई है

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