कैसे बना भारत का पहला सुपर कंप्यूटर? रूसी इंजीनियर को देना पड़ा था अजीब ‘घूस’
साल 1997 में जब आईबीएम द्वारा विकसित सुपर कंप्यूटर ‘ब्लू’ ने विश्व शतरंज चैंपियन गैरी कास्रोव को हराया तो खलबली मच गई. इसके ठीक बाद आईबीएम ने एक और सुपर कंप्यूटर डेवलप किया, जिसका नाम था ‘वाटसन’. इसने एक के बाद एक तमाम मुकाबले जीतने शुरू किए और इंसानों को मात देने लगा. 2000 का दशक शुरू होते-होते अमेरिका, यूरोप, चीन और जापान जैसे देशों ने सुपर कंप्यूटर में भारी भरकम निवेश शुरू कर दिया, लेकिन साल 2007 तक भारत के पास ऐसा कोई शक्तिशाली सुपर कंप्यूटर था ही नहीं जो टॉप 10 में भी शामिल हो. टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज यानी टीसीएस के एमडी और वाइस चेयरमैन एस. रामादुरई ने महसूस किया कि भारत इस मोर्चे पर पिछड़ रहा है.
साल 2000 की शुरुआत में टीसीएस ने ऐसे वैज्ञानिकों की नियुक्ति शुरू की जो सुपर कंप्यूटर को लेकर जुनूनी थे. इन्हीं में से एक थे आईआईटी बॉम्बे से डॉक्टरेट करने वाले मशहूर रिसर्च स्कॉलर डॉ. सुनील शेर्लेकर. उनके एक मित्र थे डॉ. नरेंद्र कर्माकर, जो मशहूर गणितज्ञ थे. दोनों अक्सर सुपर कंप्यूटर पर बात किया करते थे. हरीश भट्ट पेंगुइन से प्रकाशित अपनी किताब ‘टाटा स्टोरीज’ में लिखते हैं कि एक दिन सुनील शेर्लेकर टीसीएस के एमडी रामादुरई के पास पहुंचे और कहा कि हम सुपर कंप्यूटर बनाना चाहते हैं. क्या टाटा इसमें मदद करेगा?
रतन टाटा ने फौरन दी मंजूरी
रामादुरई जानते थे कि यह परियोजना न सिर्फ टाटा के लिए बल्कि पूरे भारत के लिए कितनी अहम है. उन्होंने खुद रतन टाटा को एक चिट्ठी लिखी और कहा ‘यह एक ऐसा अवसर है जिस पर गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए…’ रतन टाटा ने फौरन इस परियोजना को मंजूरी दे दी. इसके बाद टाटा ग्रुप की मुख्य कंपनी टाटा संस के बोर्ड ने मार्च 2006 में परियोजना पर आगे बढ़ने का अप्रूवल दे दिया. पुणे में एक नई कंपनी कंप्यूटेशनल रिसर्च लैबोरेट्रीज की नींव रखी गई. तमाम जुनूनी इंजीनियर दिन रात भारत के सुपर कंप्यूटर के सपने को साकार करने में जुट गए.