एक जमीन… भारतीय सेना… और 90 साल… हेमंत सोरेन तक कैसे पहुंचा ED का हाथ? दिलचस्‍प है वाकया

हेमंत सोरेन ने बुधवार को झारखंड के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया, जिसके बाद प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने उन्हें जमीन घोटाला मामले में गिरफ्तार कर लिया. भूमि घोटाले से जुड़े धनशोधन मामले में ईडी द्वारा लगभग सात घंटे तक पूछताछ किए जाने के बाद सोरेन ने राजभवन में राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन को अपना इस्तीफा सौंप दिया. लेकिन ये पूरा मामला है क्या और कहां से हुई इसकी शुरुआत, चलिए जानते हैं.

जून 2022 में रांची के बरायतु पुलिस थाने में एक एफआईआर दर्ज हुई थी. ये एफआईआर रांची नगर निगम के टैक्स कलेक्टर दिलीप शर्मा की ओर से दर्ज कराई गई थी. इसमें प्रदीप बागची नाम के शख्स को आरोपी बनाया गया. आरोप था कि प्रदीप बागची ने फर्जी कागजातों के जरिए भारतीय सेना की एक संपत्ति को हड़प लिया है. ईडी ने जब इसकी जांच की तो पता चला कि 4.5 एकड़ की ये जमीन बीएम लक्ष्मण राव की थी, जिन्होंने आजादी के बाद इसे सेना को सौंप दिया था.अप्रैल 2023 में ईडी ने प्रदीप बागची समेत सात आरोपियों को मामले में गिरफ्तार किया, जिन सात को गिरफ्तार किया गया, उनमें से दो- अफसर अली और भानु प्रताप सरकारी कर्मचारी थे. अफसर अली सरकारी अस्पताल में ग्रेड-3 के कर्मचारी हैं, जबकि भानु प्रताप रेवेन्यू सब-इंस्पेक्टर थे. बाकी सभी लैंड माफिया से जुड़े थे और फर्जी दस्तावेजों के जरिए जमीनों की बिक्री में शामिल थे.

ऐसे होती थी जमीन की खरीद फरोख्त और फर्जीवाड़ा

ईडी ने जांच के दौरान पाया कि सेना की जमीन का असली मालिक प्रदीप बागची को दिखाने के लिए लैंड माफियाओं, बिचौलियों और नौकरशाहों ने मिलकर काम किया. जांच में ईडी को पता चला कि एक फर्जी दस्तावेज बनाया गया था. इसे 1932 का दिखाया गया. इसमें लिखा था कि ये जमीन प्रफुल्ल बागची ने सरकार से खरीदी थी. 90 साल बाद 2021 में प्रफुल्ल बागची के बेटे प्रदीप बागची ने ये जमीन कोलकाता की जगतबंधु टी एस्टेट लिमिटेड को बेच दी.जगतबंधु टी एस्टेट के डायरेक्टर दिलीप घोष हैं, लेकिन जांच में पता चला कि जमीन असल में अमित अग्रवाल नाम के शख्स को मिली. अमित अग्रवाल कथित तौर पर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के करीबी बताए जाते हैं. पिछले साल जून में ईडी ने दिलीप घोष और अमित अग्रवाल को गिरफ्तार कर लिया था.

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