सवाल जवाब: शनि कब देते हैं शुभ और अशुभ फल, साढ़ेसाती के चरणों में बनाते हैं समृद्ध

यदि कुंडली के धन भाव मे चंद्रदेव अथवा अष्टम भाव में शनि महाराज विराजमान हों, तो ऐसा व्यक्ति जीवन में बार-बार मृत्यु को धता बताकर अपना बाल बांका कराए बगैर मुस्कुराते हुए सकुशल लौट आता है। यह योग दीर्घायु प्रदाता है।

इसे भी आज़माइए

यदि झूठे आरोप लगते हों, सम्मान न मिलता हो, बात-बात में मज़ाक बनता हो, बेवज़ह तिल का ताड़ बना दिया जाता हो, कोई गंभीरता से न लेता हो, लोग गलत समझते हों, तो यह अशुभ राहु का संकेत है। चंदन का टुकड़ा पीले सूत के धागे से बांधकर पास रखने व चंदन के इत्र और सुगंध लगाने से लाभ होगा, ऐसा मान्यताएं कहती हैं।

बात पते की

जन्म कुंडली के दशम भाव में यदि शुक्र आसीन हो, तो व्यक्ति मिलनसार, उदार व प्रसिद्ध होता है। ये लोग समाज में बहुत असर रखते हैं और रसूखदार माने जाते हैं। दसवां भाव कर्म अर्थात करियर का होता है, ये लोग व्यावसायिक जीवन में फलक छूते हैं। आभूषण, सौंदर्य सामग्री, डिज़ाइनर वस्त्र, फैशन, कॉर्पेट, विज्ञापन, सिनेमा, कला, साहित्य, अभिनय, निर्देशन, मेकअप आर्टिस्ट, इंटिरियर डिज़ाइनर, फर्नीचर, ट्रैवल्स, वाहन, चित्रकला, मॉल, क्लब, खिलौने, मिठाइयों, चॉकलेट के कारोबार से अच्छा धन कमाते हैं। पिता से सुख व सहयोग मिलता है। ज्योतिष में रुचि होती है। शुक्र दशम भाव में यदि अशुभ हो, तो बुरे व्यसन व जीवन में असफलताओं का कारक बनता है। शुक्र सप्तम दृष्टि चतुर्थ भाव पर होने से माता का स्नेह और उत्तम सुख प्राप्त होता है। तथा भवन-वाहन का सुख मिलता है। शुक्र यदि मित्रराशि में हो, तो करियर में कामयाबी और प्रसिद्धि देता है। शत्रुराशि का शुक्र व्यावसायिक जीवन कठिनाइयों से भरा होता है और पिता से मतभेद होते हैं। स्वराशि यानी वृष या तुला का शुक्र करियर चमकाता है। अपनी उच्च राशि मीन में होने पर शुक्र स्त्रियों के इस्तेमाल में आने वाली वस्तुओं के कारोबार से अकूत धन के साथ सामाजिक प्रतिष्ठा देता है।

प्रश्न: शनि कब शुभ होते हैं, कब अशुभ? विस्तार से बताइए।-विधि राय

उत्तर:सद्‌गुरुश्री कहते हैं कि सूर्य पुत्र शनि न्यायधीश माने जाते हैं। यही कारण है कि यह साढ़े साती के विभिन्न चरणों में जातक को कर्मानुकूल फल देकर उसकी उन्नति व समृद्धि का मार्ग प्रशस्त करते हैं। ये वृद्ध, तीक्ष्ण, आलसी, वायु प्रधान, नपुंसक, तमोगुणी, पुरुष प्रधान ग्रह है। इनका रंग काला, स्वाद कसैला, प्रिय वस्तु लोहा, वाहन गिद्ध है। यह मकर और कुंभ राशियों का स्वामी तथा मृत्यु के देवता हैं। यह अंतर्ज्ञान के भी कारक हैं, इसीलिए शनि प्रधान लोग संन्यास ग्रहण कर लेते हैं। शनि राजदूत, कानून, शिल्प, दर्शन, सेवक, तंत्र, मंत्र और यंत्र विद्याओं का द्योतक हैं। कृषक, मजदूर एवं न्याय विभाग पर भी शनि का अधिकार होता है। ऊसर भूमि इनका निवास है। व्यक्ति के स्नायु तंत्र व पैर के दर्द को प्रभावित करते हैं। इनकी माता छाया एवं मित्र राहु व बुध हैं। शनि के दोष को राहु और बुध दूर करते हैं। जब गोचर में शनि बली होते हैं, तो लोगों की उन्नति होती है। कुंडली में तृतीय, षष्ठ, दशम व एकादश भाव में शनि शुभता देते हैं। प्रथम, द्वितीय, पंचम, सप्तम भाव के शनि अरिष्टकर हैं। चतुर्थ, अष्टम, द्वादश भाव में ये प्रबल अरिष्टकारक हैं।

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