रावण ने लक्ष्मण को बताया काल यानि समय का सूक्ष्म रहस्य

समय यानी काल का ज्ञान, कब, क्या करना है, जानने से ही जीवन की उन्नति होती है, भाग्य भी उनका साथ देता है जो काल ज्ञान को समझकर क्रिया करते हैं। काल तो अपने महत्व को हर क्षण दर्शाता है और जो इसके महत्व को नहीं समझता, वह जीवन में उन्नति नहीं कर पाता। काल ज्ञान द्वारा मनुष्य अपनी गति को पहचानकर स्वतंत्र रूप से जीवन जी सकता है। जो समय को पहचान लेता है, सही समय, सही व्यक्ति का चुनाव कर, सही क्रिया करता है वही जीवन में सफल होता है। काल अर्थात् समय तो उस व्यक्ति की भांति है जिसके मस्तक पर आगे बाल हैं, पीछे से पूरा गंजा है, यदि समय पर इसे नहीं पकड़ा तो फिर यह हाथ नहीं आता और मनुष्य के जीवन में पछतावा ही रहता है। काल के महत्व के बारे में एक प्रसिद्ध प्रसंग है, जब रावण का अंत समय निकट आ गया, तो श्रीराम ने लक्ष्मण को आज्ञा दी कि वह रावण से जाकर काल के ज्ञान को प्राप्त करे।

लक्ष्मण ने राम की आज्ञा मानकर शिष्य भाव से जाकर रावण से प्रार्थना कर उस ज्ञान को पाने की इच्छा व्यक्त की, रावण ने लक्ष्मण को ‘काल-ज्ञान’ समझाया। रावण ने लक्ष्मण को सात पत्ते एक साथ रखने को कहा और बोला, कि जब मैं कहूँ तो एक तीर से इन सात पत्तों को बींध देना और रावण ने उचित समय देखकर जब पत्तों को बिंधवाया तो पत्ते क्रम से स्वर्ण, रजत, ताम्र आदि धातु में परिवर्तित होते गए तथाअंतिम पत्ता पूर्ववत् पत्ता ही रह गया। रावण ने समझाया, कि लक्ष्मण! काल के सौवें हिस्से में भी फर्क आ जाता है। अतः काल का प्रत्येक हिस्सा अपने आप में विशेष महत्व रखता है। रावण ने पूर्णता के साथ लक्ष्मण को इसका ज्ञान दिया, किन्तु स्वयं पर उसे दुरूख हुआ, कि वह काल का ज्ञाता होकर भी काल की गति को नहीं समझ पाया और स्वयं उसे ही काल का ग्रास बनना पड़ा। काल अर्थात् समय का तो एक अति उत्तम उदाहरण ‘महाभारत’ में भी है, जब भीष्म पितामह युद्ध में बाणों से पूरी तरह से बिंध गये और रणभूमि में ही गिर गये, तो अर्जुन ने उनसे प्रार्थना की, हे पितामह! आपको तो इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त है, अतः आप अपनी इच्छा मृत्यु का वरण कर लीजिए, इतना अधिक कष्ट सहन मत करिए।

भीष्म पितामह ने उत्तर दिया, मैं उचित समय की प्रतीक्षा कर रहा हूँ, जब उचित समय आएगा तो मैं स्वयं ही प्राण त्याग दूंगा। भीष्म ने महीनों तक बाणों की शय्या पर रहना ज्यादा उचित समझा तथा उचित समय आने पर अपने प्राण त्यागे। इससे यह सिद्ध होता है, कि उस काल में भी काल के अद्वितीय विद्वान थे, और वे काल के महत्व को जानते थे।काल के महत्व को कोई भी अस्वीकार नहीं कर सकता, चाहे वह कितना ही बड़े से बड़ा ऋषि हो, योगी हो या फिर एक साधारण मनुष्य। सबने एकमत से इसे स्वीकारा है।

काल का चक्र तो निरन्तर गतिशील रहता है, जिससे बंधा होता है, प्रत्येक प्राणी। मानव जीवन की श्रेष्ठता इसी में है, कि वह अपने आगे आने वाले समय को पूर्व में जानकर अपने आप को आने वाली परिस्थिति के अनुरूप तैयार करे। काल की जानकारी ज्योतिष गणना के माध्यम से की जाती है। काल के क्षण को पहचान कर ही व्यक्ति सफलता के उच्चतम सोपान पर पहुंच सकता है।

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