अयोध्या में जिस दिन ढहा था बाबरी ढांचा, वहां किसने भेजे गुप्तचर? वीडियोग्राफी भी कराई
अयोध्या में 22 जनवरी को प्राण प्रतिष्ठा होनी है. रामलला, भव्य मंदिर के गर्भ गृह में विराजमान होंगे. नागर शैली में बने नए राम मंदिर परिसर की लंबाई (पूर्व से पश्चिम) 380 फुट, चौड़ाई 250 फुट और ऊंचाई 161 फुट है. मंदिर का हर मंजिल 20 फुट ऊंचा है और इसमें कुल 392 खंभे और 44 फाटक हैं. एक तरीके से राम मंदिर स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना है.
दशकों की लड़ाईश्रीराम जन्मभूमि को लेकर दशकों विवाद चला. 6 दिसंबर 1992 को जब कारसेवकों ने अयोध्या में विवादित बाबरी ढांचा गिराया तो विवाद और गहरा गया. सिविल कोर्ट से लेकर हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट तक चली लड़ाई में आखिरकार फैसला हिंदू पक्ष के हक आया.
6 दिसंबर 1992 की वो घटना6 दिसंबर 1992 को जब अयोध्या में विवादित ढांचा गिराया गया, उस वक्त पीवी नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री हुआ करते थे और शरद पवार रक्षा मंत्री. अयोध्या में कारसेवकों की भीड़ हफ्ते भर पहले से जुटनी शुरू हो गई थी. शरद पवार, राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित अपनी आत्मकथा ‘अपनी शर्तों पर: जमीनी हकीकत से सत्ता के गलियारों तक’ में लिखते हैं कि केंद्र सरकार को किसी अनहोनी की आशंका पहले से थी. मुझे लगा कि इस विषय पर फौरन कठोर कदम उठाया जाना चाहिए.
पवार लिखते हैं कि उस वक्त एसबी चव्हाण गृह मंत्री और माधव गोडेबोले गृह सचिव थे. उनका भी यही मत था. मैंने सुरक्षा की दृष्टि से विवादित ढांचे की रक्षा के लिए पीएम के सामने सेना की टुकड़ी तैनात करने का सुझाव रखा, लेकिन उन्होंने फौरन इसे अस्वीकार कर दिया.
नरसिम्हा राव ने क्यों नहीं भेजी सेना?
एनसीपी नेता शरद पवार (Sharad Pawar) लिखते हैं कि नरसिम्हा राव (PV Narasimha Rao) निश्चित ही विध्वंस नहीं चाहते थे, लेकिन उन्होंने आवश्यक उपाय भी नहीं किए. मैंने भरसक समझाने की कोशिश की. उनसे कहा कि विवादित ढांचों को गिराने के लिए कारसेवक किसी भी हद तक जा सकते हैं परंतु वह नहीं माने. नरसिम्हा राव इस बात से डर रहे थे कि अगर सेना ने गोली चलाई और कुछ लोग मार गए तो हिंसा की आग पूरे देश में फैल जाएगी ।
मुझे राजमाता पर भरोसा…’बकौल पवार, जब मैं नरसिम्हा राव से मिला तो उन्होंने मुझसे एक और बात का जिक्र किया. वह था नेशनल इंट्रीजेशन काउंसिल की बैठक का. राव ने कहा कि उस बैठक में राजमाता विजयराजे सिंधिया सहित भाजपा के वरिष्ठ नेता मौजूद थे और उन्होंने आश्वासन दिया कि अयोध्या में कोई भी अवांछनीय घटना नहीं होगी. उत्तर प्रदेश की कल्याण सिंह सरकार को भी उन्होंने ऐसा ही आश्वासन दिया था ।
पवार लिखते हैं कि जब मैंने जोर देकर कहा कि ऐसे नेताओं पर विश्वास करना खतरनाक है तो नरसिम्हा राव (PV Narasimha Rao) ने कहा- ”मुझे राजमाता के शब्दों पर पूरा भरोसा है… मैं जानता हूं वह मुझे नीचा नहीं दिखाएंगी”.
पवार ने क्यों भेजे थे गुप्तचर?
शरद पवार लिखते हैं कि जब मुझे अयोध्या में सेना भेजने की इजाजत नहीं मिली तो मैंने इंडियन आर्मी के गुप्तचर विभाग के कुछ अफसरों को अयोध्या भेजा और 6 दिसंबर की सारी गतिविधियों की वीडियोग्राफी करने का आदेश दिया. बाद में इन अधिकारियों ने बाबरी मस्जिद को ढहाने और वहां हिंसा की गतिविधियों की फोटोग्राफी-वीडियोग्राफी की.
6 दिसंबर की शाम PMO की वो बैठक
6 दिसंबर 1992 को जब विवादित ढांचा ढहा दिया गया तो उसी शाम पीएमओ में बैठक बुलाई गई. गृह सचिव माधव गोडेबोले ने एक-एक कर पूरी घटना का ब्योरा दिया. प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव सारी बातें ध्यान से सुन रहे थे और अचंभित थे