जिस टूटते तारे को देख मांगी थी आपने मन्नत, नहीं था वह कोई तारा, सच पर नहीं होगा यकीन

क्या आपने भी कभी टूटते तारे को देख कर मन्नत मांगी थी? अगर ऐसा है तो वह वास्तव में तारा था ही नहीं. जीहां यह सच है और विज्ञान की माने तो यह कोई हैरानी की बात नहीं है क्योंकि तारे तो टूटे ही नहीं हैं उनमें विस्फोट होता है पर वे कभी वैसे तो बिलकुल ही नहीं टूटते हैं जैसा कि आसामान में टूटते हुए तारे दिखते हैं. आइए जानते हैं कि ये टूटते तारे या शूटिंग स्टार्स क्या होते हैं और इनका सच क्या है ।

पहले हम तारों का सच समझें. तारे पृथ्वी की तुलना में बहुत ही बड़े होते है. सूर्य भी हमसे बहुत दूर है और इस वजह से वह एक गेंद की तरह दिखता है जबकि तारे काले आकाश में केवल एक बिदु की तरह दिखते हैं. वे करोड़ों अरबों प्रकाशवर्ष की दूरी पर होते है और इसी कारण से वे इतने छोटे दिखते हैं.

एक सच यह है कि तारे कभी टूटते नहीं है, जिस तरह से हमें ये शूटिंग स्टार या तारे टूटते हैं. तारों में विस्फोट होता है और इससे वे टूटते नहीं है बल्कि इससे चारों ओर तेजी से प्रकाश और विकिरण फैलता है. तारे धीरे धीरे अपना ईंधन खत्म कर खत्म होते हैं जिसके बाद उनके अवशेष से न्यूट्रॉन तारा बनता है या फिर ब्लैक बनते हैं. लेकिन ये तारे किसी भी स्थिति में पृथ्वी के पास तक नहीं आ सकते.

तो फिर टूटते तारे क्या होते हैं. टूटते तारे वास्तव में उल्का और उल्कापिंड होते हैं. वास्तव में वे क्षुद्रग्रह और बड़ी बड़ी चट्टाने होती हैं जो पृथ्वी के वायुमंडल के पास आ जाते हैं. खास बात ये है कि ये चट्टानें किसी क्षुद्रग्रह या धूमकेतु के अवशेष होती हैं. ये पृथ्वी के वायुमंडल तक में घुस जाती हैं.

जब ये चट्टानें या पत्थर के बड़े टुकड़े वायुमंडल में घुसते हैं तो वायुमंडल की हवा से उनका तेज घर्षण होता है. स्थिति ये बन जाती है कि ये गिरते हुए तेज घर्षण के कारण जलने लगते हैं. यही जलती हुई चट्टानें उल्कापिंड कहलाते हैं. मजेदार बात यह है कि इनमें से लगभग सभी जलते जलते खत्म हो जाते हैं और धरती तक नहीं पहुंच पाते हैं. इसलीए ये आसमान से गिरते हुए दिखने के कारण टूटते तारे की लगते है.

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