टेक्नोलॉजी का ‘करिश्मा’ है ये बंदूक, बिना गोली-बारूद टारगेट को कर देती है ढेर, NSG भी करती है इस्तेमाल
समय के साथ टेक्नोलॉजी काफी एडवांस हुई है. इसका इस्तेमाल जहां कंपनियां और आम जनता को मिलता है. तो वहीं अलग-अलग देशों की सेनाएं भी टेक्नोलॉजी की मदद से अपने को और बेहतर बनाती हैं. दुश्मन से लोहा लेने के लिए टेक्नोलॉजी बेहद काम आता है. ऐसा ही टेक्नोलॉजी का एक करिश्मा ड्रोन किलर गन होते हैं. ये गन किसी भी बाकी बंदूक की तरह ही दिखाई देते हैं. लेकिन, इनसे न गोली निकलती है और न ही शूट की आवाज आती है. फिर भी टारगेट ढेर हो जाता है.
ड्रोन किलर गन का इस्तेमाल अवैध ड्रोन या दुश्मन की तरफ से हमले या रेकी के लिए उड़ाए जा रहे ड्रोन को नष्ट करने के लिए किया जाता है. भारत में इसका इस्तेमाल नेशनल सिक्योरिटी गार्ड (NSG) द्वारा भी किया जाता है. ये भारत का एक आतंकवाद विरोधी बल है, जिन्हें ब्लैक कैट्स के नाम से भी जाना जाता है. दुनियाभर की बाकी सेनाएं भी इस गन का इस्तेमाल करती हैं.
बिना गोली-बारूद कैसे काम करती है ये गन?
ड्रोनकिलर बंदूकें, जिन्हें ड्रोन जैमर या ड्रोन डिसरप्टर के रूप में भी जाना जाता है. ये अनऑथराइज्ड ड्रोन के कंट्रोल और नेविगेशन सिस्टम को जाम कर बेअसर करने के लिए डिजाइन किए गए डिवाइस हैं. इन बंदूकों का इस्तेमाल आमतौर पर सुरक्षा एजेंसियों और सैन्य कर्मियों द्वारा प्रतिबंधित क्षेत्रों में अनधिकृत ड्रोन गतिविधि का मुकाबला करने के लिए किया जाता है.
ड्रोनकिलर बंदूकें अक्सर अपने आसपास ड्रोन की मौजूदगी का पता लगाने के लिए रडार, रेडियो फ्रीक्वेंसी (RF) स्कैनर या अन्य सेंसर टेक्नोलॉजी का उपयोग करती हैं. एक बार जब ड्रोन का पता चल जाता है. तब ड्रोनकिलर गन, ड्रोन के कम्यूनिकेशन और कंट्रोल फ्रीक्वेंसी को बाधित करने के उद्देश्य से जैमिंग सिग्नल एमिट करती है. ये सिग्नल ड्रोन की उसके ऑपरेटर या GPS सिग्नल से कमांड लेने की क्षमता पर हस्तक्षेप करता है. इससे ड्रोन या तो अपनी जगह पर ही उड़ता रहता है, टेकऑफ पॉइंट पर लौट जाता है या नीचे उतर जाता है.