कौन हैं जामनगर के वो राजा, जिनका मुरीद पूरा पोलैंड, वहां की कई सड़कें और प्रोजेक्ट्स उनके नाम पर

गुजरात के उस महाराजा का नाम महाराजा जाम साहब दिग्विजयसिंह जी रणजीतसिंह जी है. वो नवानगर के महाराजा थे. आज भी जब आप पोलैंड जाएंगे तो महाराजा के नाम पर कई सड़कों के नाम नजर आ जाएंगे. उन्होंने दूसरे विश्व युद्ध के दौरान पोलैंड के 600 से अधिक पोलिश बच्चों और महिलाओं को बचाया था. उनके लिए अपने घर के दरवाजे खोल दिए थे. महाराजा ने केवल इतनी ही नहीं किया बल्कि इतने सारे लोगों का नौ सालों तक खयाल भी रखा. उनके खाने और ठहरने की व्यवस्था भी की.

घटना कुछ यूं है. जब हिटलर ने पोलैंड पर आक्रमण कर दूसरे विश्व युद्ध की शुरुआत की, तब पोलैंड के सैनिकों ने अपनी 500 महिलाओ और करीब 200 बच्चों को एक जहाज में बिठाकर समुद्र में छोड़ दिया. जहाज के कैप्टन से कहा गया कि इन्हें किसी भी देश में ले जाओ,जहां इन्हें शरण मिल सके अगर जिंदगी रही और हम बचे रहे तो दोबारा मुलाकात होगी.

500 शरणार्थी पोलिस महिलाओ और 200 बच्चों से भरा वो जहाज जब ईरान के सिराफ़ बंदरगाह पहुंचा तो वहां किसी को शरण की अनुमति नहीं मिली. फिर कई देशों में उनके साथ यही सलूक हुआ. अंत में वो जहाज भटकते हुए गुजरात के जामनगर के तट पर आया.जामनगर के तत्कालीन महाराजा “जाम साहब दिग्विजय सिंह” ने ना केवल उन महिलाओं और बच्चों के लिए अपना महल खोल दिया बल्कि रियासत के सैनिक स्कूल में उन बच्चों की पढाई लिखाई की व्यवस्था की ।

ये शरणार्थी जामनगर में कुल नौ साल तक रहे. भारत आये पोलिश बच्चों की परवरिश काफी अच्छे तरीके से हुई. उनकी पढाई का भी बहुत ध्यान रखा गया. उन्ही शरणार्थी बच्चों में एक बच्चा बाद में पोलैंड का प्रधानमंत्री भी बना. अब भी हर साल उन शरणार्थीयो के वंशज जामनगर आते हैं. अपने पूर्वजों को याद करते है.

पोलैंड की राजधानी वारसा में कई सड़कों के नाम महाराजा जाम साहब के नाम पर है,उनके नाम पर पोलैंड में कई योजनायें चलती हैं. हर साल पोलैंड के अखबारों में महाराजा जाम साहब दिग्विजय सिंह के बारे में आर्टिकल छपते हैं.

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